Daily Current Affairs – 2nd August 2022

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग

 

हाल ही में भारत सरकार ने घोषणा की कि वह भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का मसौदा (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निरसन अधिनियम) विधेयक, 2018 के मसौदे पर फिर से काम कर रहे हैं, जो कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा हेतु भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) को जीवंत करेगा।

 

नया संशोधित मसौदा भी भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप होगा।

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग विधेयक, 2018 का मसौदा:

परिचय:

यह विधेयक “भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का मसौदा (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निरसन अधिनियम) विधेयक, 2018” से संबंधित है।

इसे जनवरी, 2018 में पेश किया गया था।

लेकिन इसे कभी अंतिम रूप नहीं दिया गया और दो वर्ष के भीतर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा की गई।

प्रमुख बिंदु:

यह विधेयक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 को निरस्त करता है और भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) की स्थापना करता है।

HECI निम्नलिखित द्वारा उच्च शिक्षा में शैक्षणिक मानकों को बनाए रखेगा:

पाठ्यक्रमों के लिये सीखने के परिणामों को निर्दिष्ट करना।

कुलपतियों के लिये पात्रता मानदंड निर्दिष्ट करना।

न्यूनतम मानकों का पालन करने में विफल रहने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों को बंद करने का आदेश।

डिग्री या डिप्लोमा प्रदान करने का अधिकार प्राप्त प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थान को अपना पहला शैक्षणिक संचालन शुरू करने के लिये HECI में आवेदन करना होगा।

HECI के पास निर्दिष्ट आधारों पर अनुमति रद्द करने की शक्ति भी है।

विधेयक केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री की अध्यक्षता में एक सलाहकार परिषद के गठन का भी प्रावधान करता है।

परिषद केंद्र और राज्यों के बीच उच्च शिक्षा में समन्वय और मानकों के निर्धारण के लिये सलाह देगी।

कवरेज:

यह विधेयक निम्न ‘उच्च शिक्षण संस्थानों’ पर लागू होगा जिसमें शामिल हैं:

संसद या राज्य विधानसभाओं के अधिनियमों द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय।

विश्वविद्यालय और कॉलेज के रूप में स्थापित संस्थान।

इसमें राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान शामिल नहीं हैं।

वर्ष 2018 के विधेयक में प्रमुख चुनौतियाँ:

स्वायत्तता:

विधेयक का उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ावा देना है।

हालाँकि विधेयक के कुछ प्रावधान इस घोषित उद्देश्य को पूरा नहीं करते हैं।

यह तर्क दिया जा सकता है कि उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता देने के बज़ाय विधेयक HECI को व्यापक नियामक नियंत्रण प्रदान करता है।

नियामक क्षेत्र:

वर्तमान में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पेशकश करने वाले संस्थानों को 14 व्यावसायिक परिषदों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

इनमें से यह विधेयक कानूनी और वास्तुकला शिक्षा को HECI के दायरे में लाने का प्रयास करता है।

यह स्पष्ट नहीं है कि केवल इन दो क्षेत्रों को ही HECI के नियामक दायरे में क्यों शामिल किया गया है, जबकि व्यावसायिक शिक्षा के अन्य क्षेत्रों को नहीं।

अनुदानों का संवितरण:

वर्तमान में UGC के पास विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान आवंटित करने और वितरित करने का अधिकार है।

हालाँकि यह विधेयक UGC की जगह लेता है, लेकिन इसमें अनुदानों के वितरण के संबंध में कोई प्रावधान शामिल नहीं है।

इससे यह सवाल उठता है कि क्या उच्च शिक्षण संस्थानों को अनुदान के वितरण में HECI की कोई भूमिका होगी।

स्वतंत्र विनियम:

वर्तमान में केंद्रीय उच्च शिक्षा सलाहकार बोर्ड (CABE) शिक्षा से संबंधित मामलों पर केंद्र और राज्यों को समन्वय और सलाह देता है।

यह विधेयक एक सलाहकार परिषद् का निर्माण करता है और HECI को अपनी सिफारिशों को लागू करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

यह HECI को एक स्वतंत्र नियामक के रूप में कार्य करने से प्रतिबंधित कर सकता है।

HECI के कार्य:

HECI उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ावा देने और उच्च शिक्षा में शैक्षणिक मानकों के रखरखाव को सुनिश्चित करने के तरीकों की अनुशंसा करेगा।

यह निम्नलिखित मानदंड निर्दिष्ट करेगा:

पाठ्यक्रमों के लिये सीखने के परिणाम।

शिक्षण और अनुसंधान के मानक।

संस्थानों के वार्षिक शैक्षणिक प्रदर्शन को मापने के लिये मूल्यांकन प्रक्रिया।

संस्थानों का प्रत्यायन।

संस्थानों को बंद करने का आदेश

इसके अलावा HECI कई अन्य मानदंड निर्दिष्ट कर सकता है:

शैक्षणिक संचालन शुरू करने के लिये संस्थानों को प्राधिकरण प्रदान करना।

उपाधि या डिप्लोमा प्रदान करना।

विश्वविद्यालयों के साथ संस्थानों की संबद्धता।

स्वायत्तता प्रदान करना।

श्रेणीबद्ध स्वायत्तता।

कुलपतियों की नियुक्ति के लिये पात्रता मानदंड।

संस्थानों की स्थापना और समापन।

शुल्क विनियमन।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 का महत्त्व:

शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों के महत्त्व को पहचानना:

3 वर्ष की उम्र से स्कूली शिक्षा के लिये 5+3+3+4 मॉडल अपनाने की नीति बच्चे के भविष्य को आकार देने में 3 से 8 वर्ष की उम्र के प्रारंभिक वर्षों के महत्त्व को दर्शाती है।

साइलो मानसिकता से दूरी:

नई नीति में स्कूली शिक्षा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू हाई स्कूल में कला, वाणिज्य और विज्ञान धाराओं के विभाजन में लचीलापन लाना है।

साइलो मानसिकता का तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जब कुछ विभाग या क्षेत्र एक ही कंपनी में दूसरों के साथ जानकारी साझा नहीं करना चाहते हैं।

शिक्षा और कौशल का संगम:

इंटर्नशिप के साथ वोकेशनल कोर्स की शुरुआत।

यह समाज के कमज़ोर वर्गों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिये प्रेरित कर सकता है।

शिक्षा को अधिक समावेशी बनाना:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 18 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिये शिक्षा का अधिकार (RTE) प्रस्तावित है।

विदेशी विश्वविद्यालयों को अनुमति:

दुनिया के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों को एक नए कानून के माध्यम से भारत में संचालित करने के लिये ”सुविधा” दी जाएगी।

हिंदी बनाम अंग्रेजी बहस समाप्त करना:

यह कम-से-कम ग्रेड 5 तक मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर ज़ोर देता है, जिसे शिक्षण का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता है।

 

पिंगली वेंकैया

 

संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली में 02 अगस्त, 2022 को स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया की 146वीं जयंती के अवसर पर तिरंगा उत्सव का आयोजन कर रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री तिरंगा उत्सव में हिस्सा लेंगे। स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया ने देश के राष्ट्रीय झंडे को तैयार किया था। गांधी जी के अनुरोध पर उन्होंने भारत के राष्ट्रीय झंडे की परिकल्पना की थी। हालाँकि प्रारंभ में वेंकैया ने ध्वज में केवल लाल और हरे रंग का ही प्रयोग किया था, जो क्रमशः हिंदू तथा मुसलमान समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे। किंतु बाद में इसके केंद्र में एक चरखा और तीसरे रंग (सफेद) को भी शामिल किया गया। वर्ष 1931 में भारतीय राष्ट्रीय काॅॅन्ग्रेस द्वारा इस ध्वज को आधिकारिक तौर पर अपनाया गया। 4 जुलाई, 1963 को पिंगली वेंकैया की मृत्यु हो गई। तिरंगा उत्सव के इस कार्यक्रम के समापन के अवसर पर पिंगली वेंकैया के बहुमूल्य योगदान के लिये उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया जाएगा। इस अवसर पर उनके परिवार को भी सम्मानित किया जाएगा एवं हर घर तिरंगा गीत और वीडियो भी जारी किया जाएगा।

 

अंडाल थिरुनाक्षत्रम

 

1 अगस्त, 2022 को अंडाल थिरुनाक्षत्रम और प्रसिद्ध तमिल संत कवि अंडाल की जयंती है, जिन्हें देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। उन्हें दक्षिण की मीरा कहा जाता है। तमिल महीने का पूरम दिवस अंडाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। पूरम हिंदू ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से एक है। अंडाल 12 अलवार संतों में से एक मात्र महिला संत है। जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भगवान विष्णु की भक्ति के लिये समर्पित कर दिया था। माना जाता है कि उनका जन्म 7 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान श्रीविल्लिपुथुर में हुआ था। उन्हें भूमि देवी (धरती माता) का भी अवतार माना जाता है। श्रीविल्लीपुथुर मंदिर अंडाल को समर्पित है।

 

‘मिंजर मेला’

 

प्रधानमंत्री ने 31 जुलाई, 2022 को ‘मन की बात’ की 91वीं कड़ी में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के तहत एकता की भावना को बढ़ावा देने मेंं पारंपरिक मेलों के महत्त्व पर प्रकाश डाला। इस दौरान प्रधानमंत्री ने चंबा के ‘मिंजर मेला’ का जिक्र किया। हाल ही में इस मेले को केंद्र सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय दर्जा देने की भी घोषणा की गई है। दरअसल, मक्के के पौधे के पुष्पक्रम को मिंजर कहते हैं। जब मक्के पर फूल खिलते हैं, तो मिंजर मेला मनाया जाता है और इस मेले में देश भर से पर्यटक हिस्सा लेने आते हैं। मिंजर मेला 935 ई. में त्रिगर्त (अब कांगड़ा के नाम से जाना जाने वाला) के शासक पर चंबा के राजा की विजय के उपलक्ष्य में, हिमाचल प्रदेश के चंबा घाटी में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अपने विजयी राजा की वापसी पर लोगों ने उसका धान और मक्का की मालाओं से अभिवादन किया, जो कि समृद्धि और खुशी का प्रतीक है। यह मेला श्रावण मास के दूसरे रविवार को आयोजित किया जाता है। इस मेले की घोषणा के समय मिंजर का वितरण किया जाता है, जो पुरुषों और महिलाओं द्वारा समान रूप से पोशाक के कुछ हिस्सों पर पहना जाने वाला एक रेशम की लटकन है। यह तसली धान और मक्का के अंकुर का प्रतीक है जो वर्ष के श्रावण मास के आसपास उगते हैं। सप्ताह भर चलने वाला मेला तब शुरू होता है जब ऐतिहासिक चौगान में मिंजर ध्वज फहराया जाता है।