Daily Current Affairs – 18th October 2022

भारत में कोयला खदानों का कम उपयोग: GEM रिपोर्ट

 

ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) की रिपोर्ट के अनुसार, नई खदानों को बढ़ावा देने के बीच भारत की कोयला खदानों का काफी कम उपयोग किया जा रहा है।

GEM एक ऐसी फर्म है जो विश्व स्तर पर ईंधन-स्रोत के उपयोग को ट्रैक करती है। यह विकसित हो रहे अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा परिदृश्य का अध्ययन करती है, डेटाबेस, रिपोर्ट और इंटरैक्टिव टूल बनाती है ताकि बेहतर समझ विकसित हो सके।

पृष्ठभूमि:

वर्ष 2021 में भारत ने गंभीर कोयला संकट का सामना किया, जिसमें 285 थर्मल पावर प्लांट में से 100 से अधिक का कोयले का स्टॉक 25% के आवश्यक निर्धारित स्तर से नीचे गिर गया था, जिससे आंध्र प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में बिजली की कमी हो गई।

हाल ही में जारी ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) रिपोर्ट में दुनिया के सबसे बड़े कोयला उत्पादक कोल इंडिया और उसकी सहायक कंपनियों की वार्षिक रिपोर्ट का विश्लेषण किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

नई कोयला खदानों से विस्थापन का खतरा:

कोयले की कमी ने सरकार को नई कोयला परियोजनाओं का विकास कार्य शुरू करने के लिये प्रेरित किया, जहाँ 99 नई कोयला खदान परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। इन परियोजनाओं में सालाना 427 मिलियन टन (MTPA) कोयले का उत्पादन करने की क्षमता है।

यह वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने के भारत के लक्ष्य के बावजूद है।

इन परियोजनाओं से 165 गाँवों और 87,630 परिवारों को विस्थापन का खतरा होगा। इनमें से 41,508 परिवार अनुसूचित जनजाति के हैं।

कोयला खदानों का कम उपयोग:

चूँकि भारत की कोयला खदानों के उपयोग में गंभीर रूप से कमी देखी गई है, इसलिये केवल अस्थायी कोयले की कमी को पूरा करने के लिये नई परियोजनाओं का विकास करना अनावश्यक है।

भारत की कोयला खदानें औसतन अपनी क्षमता का केवल दो-तिहाई ही उपयोग करती हैं, कुछ बड़ी खदानें केवल 1% का उपयोग करती हैं।

स्वच्छ ऊर्जा भविष्य में देरी:

इन नई खदानों से भारत में फँसे हुई परिसंपत्तियों की संभावना बढ़ जाएगी, स्वच्छ ऊर्जा भविष्य में देरी होगी और इस प्रक्रिया में आर्थिक रूप से अनिश्चित खनन उद्यमों के कारण भारत के ग्रामीण समुदायों एवं पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

जल संकट:

नई कोयला परियोजनाओं से जल की कमी और बढ़ जाएगी, जिससे मांग में प्रतिदिन 1,68,041 किलोलीटर की वृद्धि होगी।

नई क्षमता में 427 MTPA में से 159 MTPA उच्च जोखिम वाले जल क्षेत्रों में स्थित होगा, जबकि 230 MTPA अत्यधिक जल जोखिम वाले क्षेत्रों के लिये नियोजित है।

कोयले का उपयोग कम करने की आवश्यकता:

ग्लोबल वार्मिंग का खतरा अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदाएँ ला सकता है।

खतरे को दूर रखने का प्रभावी तरीका जीवाश्म ईंधन- कोयला, प्राकृतिक गैस और तेल के उपयोग में कटौती करना है।

ये तीन ईंधन दुनिया की लगभग 80% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

उन सभी में सबसे अधिक नुकसानदेह कोयला है, जो प्राकृतिक गैस से लगभग दोगुना और तेल से लगभग 60% अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है।

इन रासायनिक अभिक्रियाओं का परिणाम बहुत महत्त्व रखता है क्योंकि भारत के बिजली क्षेत्र का कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में हिस्सा 49% है, जबकि इसका वैश्विक औसत 41% है।

 

ई-अपशिष्ट दिवस

 

ई-अपशिष्ट के प्रभावों को प्रतिबिंबित करने के अवसर के रूप में वर्ष 2018 से प्रतिवर्ष 14 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय ई-अपशिष्ट दिवस मनाया जाता है।

इस वर्ष की थीम है- ‘रीसाइकल इट ऑल, नो मैटर हाउ स्मॉल (‘Recycle it all, no matter how small)’।

वर्ष 2018 में (14 अक्तूबर) शुरू हुए गैर-लाभकारी अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) फोरम के अनुसार, वर्ष 2022 में लगभग 5.3 बिलियन मोबाइल/स्मार्टफोन उपयोग से बाहर हो जाएंगे।

अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE):

अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (Waste Electrical and Electronic Equipment-WEEE) के प्रबंधन से संबंधित परिचालन की जानकारी के संबंध में यह दुनिया का सबसे बड़ा बहुराष्ट्रीय क्षमता केंद्र है।

यह दुनिया भर में 46 WEEE उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन (PRO) है, जो एक गैर-लाभकारी संघ है, जिसकी स्थापना अप्रैल 2002 में हुई थी।

सर्वोत्तम अभ्यास के आदान-प्रदान और अपने प्रतिष्ठित ज्ञान आधार टूलबॉक्स तक पहुँच के माध्यम से WEEE फोरम, सदस्यों को अपने संचालन में सुधार करने में सक्षम बनाता है तथा चक्रीय अर्थव्यवस्था के प्रमोटर के रूप में जाना जाता है।

अपशिष्ट:

ई-अपशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट का संक्षिप्त रूप है और यह पुराने, अप्रचलित, या अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को संदर्भित करता है। इसमें उनके हिस्से, उपभोग्य वस्तुएंँ और पुर्जे शामिल हैं।

भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये वर्ष 2011 से कानून लागू हैं, जिसमें यह अनिवार्य है कि केवल अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता ही ई-अपशिष्ट एकत्र करेंगे। ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 को वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था।

घरेलू और वाणिज्यिक इकाइयों से अपशिष्ट को अलग करने, प्रसंस्करण तथा निपटान के लिये भारत का पहला ई-अपशिष्ट क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है।

मूल रूप से बेसल अभिसमय (1992) में ई-अपशिष्ट का उल्लेख नहीं किया गया था लेकिन बाद में इसमें वर्ष 2006 (COP8) में ई-कचरे के मुद्दों को शामिल किया गया।

नैरोबी घोषणा को खतरनाक कचरे के ट्रांसबाउंडरी मूवमेंट के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन के COP9 में अपनाया गया था। इसका उद्देश्य ई-अपशिष्ट के पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन के लिये अभिनव समाधान तैयार करना है।

भारत में अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ:

लोगों की कम भागीदारी: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अपशिष्ट का पुनर्चक्रण नहीं होने का एक प्रमुख कारण यह था कि उपभोक्ताओं ने उन्हें पुनर्चक्रित नहीं किया। हालांँकि हाल के वर्षों में विश्व भर के देश प्रभावी ‘मरम्मत के अधिकार’ कानूनों को पारित करने का प्रयास कर रहे हैं।

बाल श्रमिकों की संलग्नता: भारत में 10-14 आयु वर्ग के लगभग 4.5 लाख बाल श्रमिक विभिन्न ई-अपशिष्ट गतिविधियों में लगे हुए हैं और वह बगैर पर्याप्त सुरक्षा और सुरक्षा उपायों के विभिन्न यार्डों एवं पुनर्चक्रण कार्यशालाओं में कार्य कर रहे हैं।

अप्रभावी कानून: अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB)/PCC वेबसाइटों} पर किसी भी सार्वजनिक सूचना का अभाव है।

स्वास्थ्य के लिये खतरनाक: ई-अपशिष्ट में 1,000 से अधिक विषाक्त पदार्थ होते हैं, जो मिट्टी और भूजल को दूषित करते हैं।

प्रोत्साहन योजनाओं का अभाव: असंगठित क्षेत्र के लिये ई-अपशिष्ट के प्रबंधन हेतु कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। साथ ही, ई-अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये औपचारिक मार्ग अपनाने में लगे लोगों को आकर्षक तरीके से इस दिशा में उन्मुख करने के लिये किसी प्रोत्साहन का उल्लेख नहीं किया गया है।

ई-अपशिष्ट का आयात: विकसित देशों द्वारा 80% ई-अपशिष्ट रीसाइक्लिंग के लिये भारत, चीन, घाना और नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों को भेजा जाता है।

संबंधित अधिकारियों की उदासीनता: नगरपालिकाओं की गैर-भागीदारी सहित ई-अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान के लिये ज़िम्मेदार विभिन्न प्राधिकरणों के बीच समन्वय का अभाव।

सुरक्षा के निहितार्थ: कंप्यूटरों में अक्सर संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी और बैंक खाते के विवरण आदि होते हैं, इस प्रकार की जानकरियों को रिमूव न किये जाने की स्थिति में धोखाधड़ी की संभावना रहती है।

भारत में अपशिष्ट के संबंध में प्रावधान:

भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन के लिये नियमों का एक औपचारिक सेट है, पहली बार वर्ष 2016 में इन नियमों की घोषणा की गई और वर्ष 2018 में इसमें संशोधन हुए।

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये मसौदा अधिसूचना जारी की है।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 के अधिक्रमण में ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को अधिसूचित किया।

21 से अधिक उत्पादों (अनुसूची- I) को नियम के दायरे में शामिल किया गया था। इसमें कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (CFL) और अन्य पारा युक्त लैंप, साथ ही ऐसे अन्य उपकरण शामिल हैं।

पहली बार उत्पादकों के लक्ष्य और विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) को इस नियम के अंतर्गत लाया गया। उत्पादकों को ई-अपशिष्ट के संग्रह और उसके विनिमय के लिये ज़िम्मेदार बनाया गया है।

विभिन्न उत्पादकों के पास एक अलग उत्पादक उत्तरदायित्व संगठन (PRO) हो सकता है और वह ई-कचरे का संग्रह सुनिश्चित कर सकता है। साथ ही,पर्यावरण की दृष्टि से इसका निपटान भी कर सकता है।

जमा वापसी योजना (Deposit Refund Scheme) को एक अतिरिक्त आर्थिक साधन के रूप में पेश किया गया है जिसमें निर्माता बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री के समय जमा के रूप में एक अतिरिक्त राशि लेता है और इसे उपभोक्ता को ब्याज के साथ तब वापस करता है जब अंत में बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वापस कर दिये जाते हैं।

विघटन और पुनर्चक्रण कार्यों में शामिल श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकारों की भूमिका भी पेश की गई है।

नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।

शहरी स्थानीय निकायों (नगर समिति/परिषद/निगम) को सड़कों या कूड़ेदानों में बेकार पड़े उत्पादों को एकत्र करने और अधिकृत विघटनकर्ताओं या पुनर्चक्रण करने वालों को चैनलाइज़ करने का कार्य सौंपा गया है।

ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण के लिये मौजूदा एवं आगामी औद्योगिक इकाइयों को उचित स्थान का आवंटन।

आगे की राह

नीतियाँ और बेहतर कार्यान्वयन:

भारत में कई स्टार्टअप और कंपनियाँ हैं जिन्होंने अब इलेक्ट्रॉनिक कचरे को इकट्ठा करना और रीसाइकल करना शुरू कर दिया है। हमें बेहतर कार्यान्वयन पद्धतियों एवं समावेशन नीतियों की आवश्यकता है जो अनौपचारिक क्षेत्र को आगे बढ़ने के लिये आवास तथा मान्यता प्रदान करें और पर्यावरण की दृष्टि से हमारे रीसाइक्लिंग लक्ष्यों को पूरा करने में हमारी सहायता करें।

समावेशन की आवश्यकता: साथ ही संग्रह दरों को सफलतापूर्वक बढ़ाने के लिये उपभोक्ताओं सहित प्रत्येक हितधारक को शामिल करना आवश्यक है।

अनौपचारिक क्षेत्र को प्रोत्साहित करना: अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के साथ जुड़ने की रणनीति के साथ आगे आने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसा करने से न केवल बेहतर ई-कचरा प्रबंधन होगा बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी सहायता मिलेगी, साथ ही स्वास्थ्य और कार्य करने की स्थिति में सुधार होगा। इससे मज़दूर के साथ-साथ एक लाख से अधिक लोगों को बेहतर काम के अवसर प्राप्त होंगे।

यह प्रबंधन को पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ और निगरानी के कार्य को आसान बना देगा।

रोज़गार में वृद्धि: समय की मांग है कि ऐसा रोज़गार सृजित किया जाए जो सहकारी समितियों की पहचान कर उन्हें बढ़ावा दे और ऐसा इन सहकारी समितियों या अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 के दायरे का विस्तार करके किया जा सकता है।

यह स्थानीय एल्युमीनियम उद्योग के लिये अच्छा है।

कम ऊर्जा की खपत: नए एल्युमीनियम रेक कथित तौर पर मौजूदा स्टील रेक की तुलना में 180 टन हल्के हैं। नए डिज़ाइन की वहन क्षमता उनके स्टील समकक्षों की तुलना में 5% -10% अधिक बताई गई है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वे रोलिंग स्टॉक और रेल के अपेक्षाकृत नगण्य वियर एंड टिअर के साथ कम ऊर्जा की खपत करते हैं।

नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक: यह भारतीय रेलवे को 2030 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल करने में मदद करेगा और दुनिया का सबसे बड़ा हरित रेलवे बन जाएगा।

 

डेफएक्सपो 2022

 

डेफएक्सपो (रक्षा प्रदर्शनी) का 12वाँ संस्करण 18 अक्तूबर से गुजरात के अहमदाबाद और गांधीनगर में शुरू हो रही है। इस अवसर पर गांधीनगर के महात्मा मंदिर सम्मेलन और प्रदर्शनी केन्द्र में कई संगोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा। संगोष्ठियों का आयोजन अग्रणी उद्योग परिसंघों, विचार मंचों, भारतीय रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों, सेना मुख्यालयों, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO), गुणवत्ता महानिदेशालय, नागर विमानन मंत्रालय और राज्य सरकार करेंगी। प्रदर्शनी का आयोजन दो वर्ष में एक बार किया जाता है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रम और उद्योग, सशस्त्र बलों के लिये रक्षा उत्‍पादों का प्रदर्शन करेंगे। पाँच दिन की यह प्रदर्शनी 22 अक्‍तूबर तक चलेगी। इस बार का डेफएक्सपो अब तक का सबसे बड़ा आयोजन है। यह रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में भारत की क्षमता को प्रदर्शित करेगा। भारत एक समय रक्षा उत्‍पादों का बड़ा आयातक था, लेकिन अब वह रक्षा उत्‍पादों का निर्यात करने वाले विश्व के 25 शीर्ष देशों में शामिल हो चुका है। अब तक की सबसे बडी रक्षा प्रदर्शनी में इस बार 1136 कंपनियाँ भाग लेगी।

 

किसान सम्मान सम्मेलन 2022

 

प्रधानमंत्री मोदी ने 17 अक्तूबर को  नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में पीएम किसान सम्मान सम्मेलन 2022 का उद्घाटन किया। उन्होंने रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत 600 प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों का भी शुभारंभ किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना- एक राष्ट्र एक उर्वरक का भी शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के तहत 16,000 करोड़ रुपए की 12वीं किस्त भी जारीी की। प्रधानमंत्री ने कृषि स्टार्टअप कॉन्क्लेव और प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने उर्वरक पर एक ई-पत्रिका ‘इंडियन एज’ का भी विमोचन किया। साथ ही उन्होंने स्टार्टअप प्रदर्शनी पवेलियन का भ्रमण कर वहाँ प्रदर्शित उत्पादों का अवलोकन किया।

 

खेलो इंडिया महिला जूडो नेशनल लीग

 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का आईजी स्टेडियम 20 से 23 अक्तूबर, 2022 तक होने वाली पहली ‘खेलो इंडिया महिला जूडो नेशनल लीग’ की मेज़बानी करेगा। यह लीग जो कि 4 ज़ोन की महिला जूडो खिलाड़ियों के लिये एक राष्ट्रीय रैंकिंग टूर्नामेंट है, का आयोजन जूडो फेडरेशन ऑफ इंडिया और युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय के खेल विभाग द्वारा किया जा रहा है। युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय द्वारा इस आयोजन और ज़मीनी स्तर पर जूडो के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये 1.74 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की गई है। 31 भार वर्गों में इस टूर्नामेंट की कुल पुरस्कार राशि 24.43 लाख रुपए है। यह टूर्नामेंट चार आयु समूहों में आयोजित किया जा रहा है- सब जूनियर (12-15 वर्ष), कैडेट (15-17 वर्ष), जूनियर (15-20 वर्ष) और सीनियर (20 वर्ष और उससे अधिक)। 31 भार वर्गों में शीर्ष 7 जूडो खिलाडियों को नकद पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। राष्ट्रमंडल खेल, 2022 की रजत पदक विजेता तूलिका मान के साथ-साथ विश्व कैडेट जूडो चैंपियनशिप की स्वर्ण पदक विजेता व इतिहास रचने वाली लिंथोई चनमबाम टूर्नामेंट में हिस्सा लेंगी। इस प्रतियोगिता में कुल 496 जूडो खिलाड़ी हिस्सा लेंगे। इस राष्ट्रीय लीग के लिये प्रतियोगियों का चयन उनकी रैंकिंग और उनके संबंधित क्षेत्रों यानी उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम में प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है।