भारत का अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) की वर्षगाँठ मनाने के लिये इंडियन स्पेस कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया।
अर्नस्ट एंड यंग (EY) और भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) द्वारा तैयार की गई संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2025 तक 13 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँचने के लिये तैयार है।
प्रमुख बिंदु:
स्पेस-लॉन्च सेगमेंट 13% की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) से बढ़ेगा, जो निजी भागीदारी बढ़ने, नवीनतम प्रौद्योगिकी अपनाने और लॉन्च सेवाओं की कम लागत से प्रेरित है।
उपग्रह सेवाएँ और अनुप्रयोग खंड वर्ष 2025 तक अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र के 36 प्रतिशत के साथ अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा होगा।
वर्ष 2025 तक देश का उपग्रह विनिर्माण 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा। वर्ष 2020 में यह 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
उपग्रह निर्माण भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में दूसरा सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला क्षेत्र होगा।
भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA):
परिचय:
इसे वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया था, यह अंतरिक्ष और उपग्रह कंपनियों का प्रमुख उद्योग संघ है।
अंतरिक्ष सुधार के चार स्तंभ:
निजी क्षेत्र को नवाचार की स्वतंत्रता की अनुमति देना।
सरकार की भूमिका प्रवर्तक के रूप में।
युवाओं को भविष्य के लिये तैयार करना।
अंतरिक्ष क्षेत्र को आम आदमी की प्रगति के लिये एक संसाधन के रूप में देखना।
ISpA को भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को एकीकृत करने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया है। ISpA का प्रतिनिधित्व प्रमुख घरेलू और वैश्विक निगमों द्वारा किया जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष तथा उपग्रह प्रौद्योगिकियों में उन्नत क्षमताएँ हैं।
उद्देश्य:
ISpA भारत को आत्मनिर्भर, तकनीकी रूप से उन्नत और अंतरिक्ष क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिये सरकार तथा उसकी एजेंसियों सहित भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में सभी हितधारकों के साथ नीतिगत एकीकरण एवं परामर्श करेगा।
ISpA भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के लिये वैश्विक संबंध बनाने की दिशा में भी काम करेगा ताकि देश में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और निवेश लाया जा सके तथा अधिक उच्च कौशल वाली नौकरियाँ सृजित की जा सकें।
महत्त्व:
संगठन के मुख्य लक्ष्यों में से एक भारत को वाणिज्यिक अंतरिक्ष-आधारित क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने की दिशा में सरकार के प्रयासों को पूरा करना है।
ISRO के रॉकेट द्वारा विभिन्न देशों के पेलोड और संचार उपग्रहों को ले जाने में लंबा समय लगता है, निजी हितधारकों के प्रवेश से इसमें तेज़ी आएगी।
निजी क्षेत्र की कई कंपनियों ने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में रुचि दिखाई है, जिसमें अंतरिक्ष आधारित संचार नेटवर्क सामने आ रहे हैं।
अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता:
अंतरिक्ष क्षेत्र के बाज़ार को बढ़ाने की आवश्यकता:
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) केंद्र द्वारा वित्तपोषित है और इसका वार्षिक बजट 14,000 से 15,000 करोड़ रुपए के मध्य है, इसका अधिकांश उपयोग रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण में किया जाता है।
भारत में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार छोटा है। इस क्षेत्र के आकार को बढ़ाने के लिये निजी हितधारकों का बाज़ार में प्रवेश करना अनिवार्य है।
इसरो सभी निजी हितधारकों के लिये ज्ञान और प्रौद्योगिकी, जैसे कि रॉकेट एवं उपग्रहों की निर्माण तकनीक को साझा करने योजना बना रहा है।
संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, रूस जैसे देशों में बोइंग, स्पेसएक्स, एयरबस, वर्जिन गैलेक्टिक आदि बड़ी निजी कंपनियाँ अंतरिक्ष उद्योग में संलग्न हैं।
निजी क्षेत्रं में सुधार:
इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र की हमेशा से भागीदारी रही है, लेकिन यह पूरी तरह से पुर्जों और उप-प्रणालियों के निर्माण तक सीमित है। रॉकेट एवं उपग्रहों के निर्माण में सक्षम होने के लिये उद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।
निजी हितधारक अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोगों और सेवाओं के विकास के लिये आवश्यक नवाचार कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त इन सेवाओं की मांग विश्व स्तर पर बढ़ रही है, अधिकांश क्षेत्रों में उपग्रह डेटा, इमेजरी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
संबंधित पहलें:
इन–स्पेस (IN-SPACe):
इन-स्पेस को निजी कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने के एक समान अवसर प्रदान करने के लिये लॉन्च किया गया था।
यह ISRO और अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने या भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने वाले सभी लोगों के मध्य सिंगल-पॉइंट इंटरफेस के रूप में कार्य करता है।
न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
बजट 2019 में घोषित NSIL का उद्देश्य भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये ISRO द्वारा वर्षों से किये जा रहे अनुसंधान और विकास का उपयोग करना है।
आगे की राह
भारतीय अंतरिक्ष उद्योग पर ISRO के एकाधिकार को ख़त्म करने के लिये एक नई नीति के निर्माण की आवश्यकता है जिसके तहत इच्छुक एवं सक्षम निजी अभिकर्त्ताओं के साथ उपग्रहों एवं रॉकेटों को बनाने के लिये आवश्यक ज्ञान और प्रौद्योगिकी को साझा किया जा सकता है।
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष कार्यक्रमों में से एक है, इस क्षेत्र में FDI की अनुमति देने का कदम भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्ता के रूप में स्थापित कर सकता है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) विदेशी अभिकर्त्ताओं को भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में उद्यम करने की अनुमति देगा, इससे राष्ट्रीय और विदेशी भंडार में योगदान प्राप्त होगा, साथ ही प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं नवाचारों हेतु अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।
इसके आलावा भारतीय अंतरिक्ष गतिविधि विधेयक पेश किये जाने से निजी कंपनियों को अंतरिक्ष क्षेत्र का अभिन्न अंग बनने के बारे में अधिक स्पष्टता मिल सकती है।
विश्व मानक दिवस
प्रतिवर्ष 14 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘विश्व मानक दिवस’ का आयोजन किया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य उपभोक्ताओं, नियामकों और उद्योग के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था के मानकीकरण के महत्त्व के बारे में जागरूकता पैदा करना है। विश्व मानक दिवस, 2022 की थीम “बिल्ड बैक बेटर” है। यह दिवस वर्ष 1956 में लंदन में आयोजित 25 देशों के प्रतिनिधियों की पहली बैठक को चिह्नित करता है, जिन्होंने मानकीकरण की सुविधा हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के निर्माण का निर्णय लिया था। ‘विश्व मानक दिवस’ का आयोजन पहली बार वर्ष 1970 में किया गया था। यह दिवस उन हज़ारों विशेषज्ञों के प्रयासों का सम्मान करता है, जिन्होंने वैश्विक स्तर पर मानकों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। भारत में मानकीकरण गतिविधियों के सामंजस्यपूर्ण विकास के उद्देश्य से वर्ष 1947 में भारतीय मानक संस्थान की स्थापना की गई थी। भारतीय मानक संस्थान को भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम 1986 के माध्यम से भारतीय मानक ब्यूरो में रूपांतरित कर दिया गया। भारतीय मानक ब्यूरो का मुख्य कार्य माल के मानकीकरण, अंकन (Marking) और गुणवत्ता प्रमाणीकरण की गतिविधियों को क्रियान्वित करना है। भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 2016 के माध्यम से भारतीय मानक ब्यूरो को सेवाओं के मानकीकरण और प्रमाणन से संबंधित गतिविधियों का उत्तरदायित्त्व भी सौंपा गया है।
17वाँ प्रवासी भारतीय दिवस अधिवेशन की वेबसाइट जारी
विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर ने 13 अक्तूबर, 2022 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन के साथ मिलकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 17वाँ प्रवासी भारतीय दिवस अधिवेशन की वेबसाइट जारी की। मध्य प्रदेश के इन्दौर में जनवरी 2023 में 17वाँ प्रवासी भारतीय दिवस अधिवेशन आयोजित किया जाएगा। प्रत्येक वर्ष 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस (Pravasi Bharatiya Divas- PBD) भारत के विकास में प्रवासी भारतीय समुदाय के योगदान को चिह्नित करने हेतु मनाया जाता है। 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में इसलिये चुना गया था क्योंकि इसी दिन वर्ष 1915 में महान प्रवासी महात्मा गांधी, दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्त्व किया और भारतीयों के जीवन को हमेशा के लिये बदल दिया। वर्ष 2003 से प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की शुरुआत हुई लेकिन वर्ष 2015 में इसे संशोधित कर प्रत्येक दो वर्ष में मनाने का निर्णय लिया गया। यह तब एक विषय-आधारित सम्मेलन था जिसे प्रत्येक वर्ष अंतरिम अवधि के दौरान आयोजित किया जाता था। PBD सम्मेलन प्रत्येक दो वर्ष में आयोजित किया जाता हैं। प्रवासी भारतीय दिवस 2021: 16वाँ PBD सम्मेलन वस्तुतः नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। जिसकी थीम “आत्मनिर्भर भारत में योगदान” थी।
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति की 70वीं बैठक
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति की 70वीं बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में वन्यजीव संरक्षण और भारतीय सोन चिरैया को बचाने से संबंधित विभिन्न नीतिगत मामलों पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों से भारतीय सोन चिरैया के संरक्षण के लिये प्रजनन केंद्रों की स्थापना हेतु प्रस्ताव भेजने को कहा गया। साथ ही गुजरात के नर्मदा तथा वडोदरा ज़िलों के नौ जनजातीय गाँवों एवं उत्तर प्रदेश में कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के पास के गाँवों में निर्बाध संचार संपर्क की आवश्यकता को देखते हुए स्थायी समिति ने दूरसंचार टावरों के निर्माण और ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने की सिफारिश की। समिति ने उत्तराखंड में रामबाड़ा से गरुड़ मंदिर तक ब्रिडल ट्रैक के निर्माण की भी सिफारिश की। समिति ने केदारनाथ धाम जाने वाले हज़ारों तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिये उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में सोनप्रयाग से केदारनाथ धाम के बीच रोपवे के विकास की भी सिफारिश की है।