Daily Current Affairs – 15th November 2022

डेटा स्थानीयकरण

 

हाल ही में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) ने सीमा-पार हस्तांतरण के दौरान डेटा की सुरक्षा के लिये अर्थव्यवस्थाओं हेतु डेटा स्थानीयकरण के महत्त्व पर प्रकाश डाला।

UNCTAD ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि वैश्विक व्यापार के लिये इंटरनेट का उपयोग करने वाले व्यवसायों की उत्तरजीविता दर उन लोगों की तुलना में अधिक है जो ऐसा नहीं करते हैं।

डेटा स्थानीयकरण:

डेटा स्थानीयकरण का अभिप्राय देश की क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर महत्त्वपूर्ण और गैर-महत्त्वपूर्ण डेटा (Critical data/non-critical data) का संग्रहण है।

स्थानीयकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है हमारे स्वयं के डेटा पर हमारा नियंत्रण है जो देश को गोपनीयता, सूचना लीक होने, पहचान की चोरी, सुरक्षा आदि समस्याओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाता है।

इसने विभिन्न देशों को अपने स्वयं के स्टार्टअप विकसित करने, स्थानीय रूप से विकसित होने और अपनी भाषा में विकसित होने में भी मदद की है।

डेटा स्थानीयकरण के लाभ:

गोपनीयता और संप्रभुता की रक्षा:

नागरिकों के डेटा को सुरक्षित करता है और विदेशी निगरानी से डेटा गोपनीयता तथा डेटा संप्रभुता प्रदान करता है।

डेटा स्थानीयकरण के पीछे मुख्य उद्देश्य देश के नागरिकों और निवासियों की व्यक्तिगत तथा वित्तीय जानकारी को विदेशी निगरानी से बचाना है

कानूनों और जवाबदेही की निगरानी:

डेटा तक निरंकुश पर्यवेक्षीय पहुँच भारतीय कानून प्रवर्तन को बेहतर निगरानी सुनिश्चित करने में मदद करेगी।

डेटा स्थानीयकरण के परिणामस्वरूप डेटा के अंतिम उपयोग के बारे में Google, Facebook आदि जैसी फर्मों की अधिक जवाबदेही होगी।

जांँच में आसानी:

भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों को जांँच में आसानी प्रदान करके राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करता है क्योंकि उन्हें वर्तमान में डेटा तक पहुँच प्राप्त करने के लिये पारस्परिक कानूनी सहायता संधियों (MLAT) पर भरोसा करने की आवश्यकता है।

MLAT सरकारों के बीच समझौते हैं जो उन देशों में से कम-से-कम एक में होने वाली जांँच से संबंधित सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करते हैं।

भारत ने 45 देशों के साथ पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (MLAT) पर हस्ताक्षर किये हैं।

अधिकार क्षेत्र  तथा संघर्षों में कमी:

यह स्थानीय सरकारों और नियामकों को आवश्यकता पड़ने पर डेटा मांगने का अधिकार क्षेत्र प्रदान करेगा।

यह सीमा पार डेटा साझाकरण और डेटा उल्लंघन के मामले में न्याय वितरण में देरी के कारण अधिकार क्षेत्र के संघर्ष को कम करता है।

रोज़गार में वृद्धि:

स्थानीयकरण के कारण डेटा सेंटर उद्योगों को लाभ होने की उम्मीद है जिससे भारत में रोज़गार का सृजन होगा।

डेटा स्थानीयकरण से हानि:

निवेश:

कई स्थानीय डेटा केंद्रों को बनाए रखने से बुनियादी ढाँचे में निवेश अधिक हो सकता है और वैश्विक कंपनियों के लिये लागत उच्च हो सकती है।

खंडित (Fractured) इंटरनेट:

स्प्लिंटरनेट, इसके तहत संरक्षणवादी नीति का डोमिनो प्रभाव अन्य देशों को भी इसका अनुसरण करने के लिये प्रेरित कर सकता है।

सुरक्षा की कमी:

भले ही डेटा देश में संग्रहीत हो, फिर भी एन्क्रिप्शन की (Key) राष्ट्रीय एजेंसियों की पहुँच से बाहर हो सकती है।

आर्थिक विकास पर प्रभाव:

ज़बरन डेटा स्थानीयकरण व्यवसायों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये अक्षमता उत्पन्न कर सकता है।

इससे लागत में भी वृद्धि हो सकती है और डेटा-निर्भरता वाली सेवाओं की उपलब्धता में भी कमी आ सकती है।

डेटा स्थानीयकरण मानदंड:

भारत में:

श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट:

व्यक्तिगत डेटा की कम से कम एक प्रति को भारत में स्थित सर्वर पर संग्रहीत करने की आवश्यकता होगी।

देश के बाहर स्थानांतरण को सुरक्षा उपायों के अधीन करने की आवश्यकता होगी।

महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा केवल भारत में संग्रहीत और संसाधित किया जाएगा।

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019:

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा 11 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में पेश किया गया था।

आमतौर पर इसे “गोपनीयता विधेयक” के रूप में जाना जाता है, इसका उद्देश्य व्यक्तिगत डेटा (जो कि व्यक्ति की पहचान कर सकता है) के संग्रह, संचालन और प्रक्रिया को विनियमित करके व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना है।

वर्ष 2022 में भारत सरकार ने संसद से व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक वापस ले लिया है क्योंकि सरकार एक नए विधेयक के माध्यम से देश में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये ऑनलाइन स्पेस को विनियमित करने हेतु “व्यापक कानूनी ढाँचे” पर विचार कर रही है।

मसौदा राष्ट्रीय कॉमर्स नीति ढाँचा:

इसके तहत डेटा स्थानीयकरण के साथ-साथ स्थानीयकरण नियमों के अनिवार्य होने से पूर्व उद्योग जगत को समायोजित करने के लिये दो साल की सनसेट (Sunset) अवधि का भी सुझाव दिया।

डेटा स्थानीयकरण को प्रोत्साहित करने और डेटा केंद्रों को बुनियादी ढाँचे का दर्जा देने के लिये प्रोत्साहन का प्रस्ताव।

ओसाका ट्रैक का बहिष्कार:

G20 शिखर सम्मेलन वर्ष 2019 में, भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था पर ओसाका ट्रैक का बहिष्कार किया। ओसाका ट्रैक ने उन कानूनों के निर्माण का प्रयास किया जो देशों के बीच डेटा प्रवाह और डेटा स्थानीयकरण को हटाने की अनुमति देंगे।

चीनी मोबाइल ऐप्स पर प्रतिबंध:

2020 में, भारत सरकार ने 59 व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले ऐप (जैसे टिक टॉक, शेयरइट, कैम स्कैनर आदि) पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, जिनमें से अधिकांश चीन की कंपनियों से जुड़े थे।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने इन ऐप्स से जुड़े डेटा सुरक्षा और राष्ट्रीय संप्रभुता दोनों के बारे में चिंताओं का हवाला देने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 को लागू किया

वैश्विक:

कनाडा और ऑस्ट्रेलिया अपने स्वास्थ्य डेटा को बहुत सावधानी से संरक्षित करते हैं।

चीन ने अपनी सीमाओं के भीतर सभी सर्वर में सख्त डेटा स्थानीयकरण को अनिवार्य किया है।

यूरोपीय संघ (EU) ने जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) लागू किया था जो निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में से एक के रूप में शामिल है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय स्तर पर कोई एकल डेटा संरक्षण कानून नहीं है। हालाँकि, इसमें स्वास्थ्य देखभाल के लिये , भुगतान के लिये HIPAA (स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी और जवाबदेही अधिनियम 1996) जैसे व्यक्तिगत कानून हैं, ।

कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौते भी मौजूद हैं। इनमें समान डेटा संरक्षण मानदंडों और सीमा-पार डेटा हस्तांतरण और डेटा स्थानीयकरण के प्रति प्रतिबद्धताओं के लिये प्रतिबद्ध देश शामिल हैं, उदाहरण के लिये, डेटा के वैध विदेशी उपयोग (क्लाउड) अधिनियम (2018), ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिये व्यापक और प्रगतिशील समझौता (2018), डिजिटल अर्थव्यवस्था समझौता (DEA), (2020), आदि हैं।

आगे की राह

डेटा स्थानीयकरण के लिये नीति निर्माण के लिये एक एकीकृत दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है।

भारत की सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाओं (ITeS) और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) उद्योगों के हितों पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है, जो सीमा-पार डेटा प्रवाह पर फल-फूल रहे हैं।

उल्लंघन या खतरे के मामले में भारतीय कानून एजेंसियों द्वारा डेटा तक पहुँच, निजी विचार और पसंद पर तथा न ही किसी अन्य देश की लंबी कानूनी प्रक्रियाओं पर जो भारत में उत्पन्न डेटा को होस्ट करता है, निर्भर नहीं हो सकती है।

सूत्रों के अनुसार, कानून प्रवर्तन की कमी भारत और ब्रिटेन के बीच हालिया मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में समस्या पैदा कर रही है।

बैंकों, दूरसंचार कंपनियों, वित्तीय सेवा प्रदाताओं, प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों, ई-कॉमर्स कंपनियों और सरकार सहित सभी भागीदारों को यह सुनिश्चित करने में ज़िम्मेदार भूमिका निभाने की आवश्यकता है कि निर्दोष नागरिकों को नुकसान उठाने के आघात से न गुजरना पड़े।

 

झारखंड राज्य गठन दिवस

 

15 नंवबर, 2000 को भारत संघ के 28वें राज्य के रूप में झारखंड का निर्माण हुआ। झारखंड राज्य आदिवासियों की गृहभूमि है। झारखंड में मुख्य रूप से छोटा नागपुर पठार और संथाल परगना के वन क्षेत्र शामिल हैं। यहाँ की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराएँ हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा’ ने नियमित रूप से आंदोलन किया, जिस कारण सरकार ने वर्ष 1995 में ‘झारखंड क्षेत्र परिषद’ की स्थापना की और इसके पश्चात् यह राज्य पूर्णत: अस्तित्त्व में आया। बाबूलाल मरांडी झारखंड राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। इन्होंने वर्ष 2006 में भारतीय जनता पार्टी छोड़कर ‘झारखंड विकास मोर्चा’ की स्थापना की थी। झारखंड भारत का एक प्रमुख राज्य है जो गंगा के मैदानी भाग के दक्षिण में है। झारखंड राज्य में बहुत बड़ी संख्या में घने वन हैं जहाँ अनेकों वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, यही कारण है कि राज्य का नाम झारखंड पड़ा है। संपूर्ण भारत में वनों के अनुपात में यह प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है तथा वन्यजीवों के संरक्षण के लिये मशहूर है। ‘झारखंड’ का शाब्दिक अर्थ है- “वन का क्षेत्र”। झारखंड के पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार तथा दक्षिण में ओडिशा है। औद्योगिक नगरी राँची इसकी राजधानी है। इस प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में धनबाद, बोकारो एवं जमशेदपुर शामिल हैं तथा वर्तमान समय में झारखंड राज्य के कुल ज़िलों की संख्या 24 है।

 

नवजात शिशु दिवस (सप्ताह)

 

नवजात शिशु देखभाल सप्ताह देश में प्रतिवर्ष 15 से 21 नवंबर मनाया जाता है। इस सप्ताह को मानने का उद्देश्य बच्चे की उत्तरजीविता और विकास के लिये नवजात शिशु की देखभाल के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। बच्चे की उत्तरजीविता के लिये नवजात काल की अवधि (जीवन के पहले अठाईस दिन) महत्त्वपूर्ण होते है, क्योंकि इस अवधि में बाल्यवस्था के दौरान किसी अन्य अवधि की तुलना में मृत्यु का जोखिम अधिक होता है। आजीवन स्वास्थ्य और विकास के लिये जीवन का पहला महीना आधारभूत अवधि है। स्वस्थ शिशु स्वस्थ वयस्कों में विकसित होते है, जो कि अपने समुदायों और समाजों की उन्नति एवं विकास में योगदान करते हैं। प्रतिवर्ष 26 लाख बच्चे जीवन के पहले सप्ताह में मृत्यु को प्राप्त हो जाते है तथा इसके अतिरिक्त प्रतिवर्ष 2.6 मिलियन बच्चे मृत जन्म लेते हैं। भारत में वर्ष 2013 में 0.75 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई, हालाँकि नवजात शिशु मृत्यु दर (NMR) वर्ष 2000 में प्रति 1000 जीवित जन्मों में 44 से घटकर वर्ष 2013 में प्रति 1000 जीवित जन्मों में 28 की गिरावट आई है। यदि हम वर्ष 2035 तक पाँच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों की मृत्यु दर 1000 जन्में बच्चों में 20 या उससे कम करना चाहते है, तो विशिष्ट प्रयास करने होगें। नवजात मृत्यु के मुख्य कारण हैं: अपरिपक्वता, जन्म के दौरान जटिलताएँ, गंभीर संक्रमण। सभी नवजात शिशुओं में बीमारी के ज़ोखिम को कम और उनकी वृद्धि बढ़ाने एवं विकास के लिये आवश्यक नवजात शिशु देखभाल की आवश्यकता होती है।

 

राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों की घोषणा

 

केंद्रीय युवा मामले और खेल मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल पुरस्कार 2022 की घोषणा की है। राष्ट्रपति 30 नवंबर, 2022 को विजेताओं को पुरस्कार प्रदान करेंगी। टेबल टेनिस खिलाड़ी अचंता शरत कमल को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के लिये चुना गया है। 25 खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार दिये जाएंगे। खेलों में लाईफ टाइम अचीवमेंट के लिये मेज़र ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार चार खिलाड़ियों को दिया जाएगा। इनमें अश्विनी अक्कुंजी सी, धर्मवीर सिंह, बी.सी. सुरेश नीर बहादुर गुरुंग शामिल हैं। इस पुरस्कार को पहले राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के रूप में जाना जाता था, यह भारत में किसी खिलाड़ी को दिया जाने वाला सर्वोच्च खेल सम्मान है और इसे वर्ष 1991-92 में स्थापित किया गया था। यह विगत चार वर्ष की अवधि में किसी खिलाड़ी द्वारा खेल के क्षेत्र में शानदार एवं सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये दिया जाने वाला सर्वोच्च खेल पुरस्कार है। इस पुरस्कार में एक पदक, एक प्रमाण पत्र और 25 लाख रुपए का नकद पुरस्कार शामिल है।