छठा पूर्वी एशिया शिक्षा मंत्री शिखर सम्मेलन
हाल ही में भारत ने वियतनाम के हनोई में आयोजित छठे पूर्वी एशिया शिक्षा मंत्री शिखर सम्मेलन की बैठक में भाग लिया।
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS):
परिचय:
वर्ष 2005 में स्थापित यह भारत-प्रशांत क्षेत्र के सामने आने वाली प्रमुख राजनीतिक, सुरक्षा संबंधी और आर्थिक चुनौतियों पर रणनीतिक बातचीत एवं सहयोग के लिये 18 क्षेत्रीय नेताओं का एक मंच है।
पूर्वी एशिया समूह की अवधारणा को पहली बार वर्ष 1991 में तत्कालीन मलेशियाई प्रधानमंत्री महाथिर बिन मोहम्मद द्वारा बढ़ावा दिया गया था।
EAS के ढाँचे के भीतर क्षेत्रीय सहयोग के छह प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं।
ये हैं – पर्यावरण और ऊर्जा, शिक्षा, वित्त, वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दे एवं महामारी , प्राकृतिक आपदा प्रबंधन तथा आसियान कनेक्टिविटी।
सदस्य:
इसमें आसियान (दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) के दस सदस्य देशों ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम के साथ-साथ 8 अन्य देशों ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, भारत, न्यूीज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
यह आसियान-केंद्रित मंच है इसलिये इसकी अध्यक्षता केवल आसियान सदस्य ही कर सकते हैं।
ब्रुनेई दारुस्सलाम वर्ष 2021 के लिये अध्यक्ष है।
EAS बैठकें और प्रक्रियाएँ:
EAS कैलेंडर वार्षिक नेताओं के शिखर सम्मेलन में समाप्त होता है, जो आमतौर पर प्रत्येक वर्ष की चौथी तिमाही में आसियान नेताओं की बैठकों के साथ आयोजित किया जाता है।
EAS विदेश मंत्रियों और आर्थिक मंत्रियों की बैठकें भी प्रतिवर्ष आयोजित की जाती हैं।
भारत और EAS:
भारत पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के संस्थापक सदस्यों में से एक है।
नवंबर 2019 में बैंकॉक में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भारत ने भारत की इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (IPOI) का अनावरण किया था, जिसका उद्देश्य एक सुरक्षित और स्थिर समुद्री डोमेन बनाने के लिये साझेदारी बनाना है।
भारत में शिक्षा क्षेत्र से संबंधित मुद्दे:
विद्यालयों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE) 2019-20 के अनुसार, भारत में केवल 12% विद्यालयों में इंटरनेट की सुविधा है और 30% विद्यालयों में कंप्यूटर की सुविधा है।
उच्च ड्रॉपआउट दर: प्राथमिक और माध्यमिक स्तरों में विद्यालय छोड़ने की(ड्रॉपआउट) दर बहुत अधिक है। 6-14 आयु वर्ग के अधिकांश छात्र अपनी शिक्षा पूरी करने से पहले विद्यालय छोड़ देते हैं। इससे वित्तीय और मानव संसाधनों की बर्बादी होती है।
ब्रेन ड्रेन/प्रतिभा पलायन की समस्या: IIT और IIM जैसे शीर्ष संस्थानों में प्रवेश पाने के लिये कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण, भारत में बड़ी संख्या में छात्रों के लिये शैक्षणिक वातावरण काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है, इसलिये वे विदेश जाना पसंद करते हैं, जिससे हमारा देश अच्छी प्रतिभा से वंचित हो जाता है।
व्यापक निरक्षरता: शिक्षा को बढ़ाने के उद्देश्य से संवैधानिक निर्देशों और प्रयासों के बावजूद, लगभग 25% भारतीय अभी भी निरक्षर हैं जिस कारण वे सामाजिक और डिजिटल रूप से पिछड़े हुए है।
तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का अभाव: तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का विकास काफी असंतोषजनक है, जिसके कारण शिक्षित बेरोज़गारों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।
लैंगिक असमानता: हमारे समाज में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये शिक्षा के अवसर की समानता सुनिश्चित करने के सरकार के प्रयासों के बावजूद, भारत में महिलाओं की साक्षरता दर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बहुत दयनीय है।
भारत द्वारा की गई शिक्षा संबंधी पहलें:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020:
NEP 2020 शिक्षा हेतु एक समग्र, लचीले एवं बहु-विषयक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करती है और यह पहुँच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य तथा जवाबदेही के मूलभूत स्तंभों पर आधारित होने के साथ ही सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) 2030 के साथ संरेखित है।
PM SHRI योजना:
यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy NEP) के लिये एक प्रयोगशाला होगी और पहले चरण के तहत कुल 14,500 विद्यालयों को अपग्रेड किया जाएगा।
ये विद्यालय अपने आसपास के अन्य विद्यालयों को मेंटरशिप देंगे।
PM ई–विद्या:
केंद्र सरकार ने ऑनलाइन लर्निंग को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2020 में पीएम ई-विद्या कार्यक्रम शुरू किया।
सीखने की प्रक्रिया के दौरान होने वाली समस्यायों को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करके मल्टी-मोड एक्सेस को सक्षम करने हेतु डिजिटल/ऑनलाइन/ऑन-एयर शिक्षा से संबंधित सभी प्रयासों को एकीकृत करता है।
ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म: सरकार ने DIKSHA, SWAYAM MOOCS प्लेटफॉर्म, वर्चुअल लैब्स, ई-पीजी पाठशाला और नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी जैसे विभिन्न ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म भी लॉन्च किये हैं।
आगे की राह:
विद्यालयी पाठ्यक्रम में समस्या-समाधान और निर्णय लेने से संबंधित विषयों को शामिल करने की आवश्यकता है ताकि छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान सीखने का अनुभव प्रदान किया जा सके और उन्हें कार्यबल में प्रवेश करने पर बाहरी दुनिया का सामना करने के लिये तैयार किया जा सके।
यह सुनिश्चित करने के लिये कि छात्रों को आरंभ से ही सही दिशा में ले जाया जा रहा है और वे करियर के अवसरों से अवगत हैं, भारत की शैक्षिक प्रणाली को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ व्यावसायिक शिक्षा को एकीकृत करके और विद्यालय में (विशेषकर सरकारी विद्यालयों में) सही सलाह प्रदान करके सुधार करने की आवश्यकता है।
विश्व खाद्य दिवस
वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के स्थापना दिवस की याद में प्रत्येक वर्ष 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी की समाप्ति के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्त्व करती है। वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने खाद्य उत्पादन और खपत में बदलाव के तरीकों पर चर्चा करने के लिये पहले खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। यह दिवस वैश्विक स्तर पर भूख की समस्या का समाधान करने के लिये प्रतिवर्ष मनाया जाता है। यह दिवस विश्व खाद्य कार्यक्रम (जिसे नोबेल शांति पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया गया था) और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष जैसे संगठनों द्वारा भी मनाया जाता है। यह सतत् विकास लक्ष्य 2 (SDG 2) यानी ज़ीरो हंगर पर ज़ोर देता है। इसने पिछले दशकों में कुपोषण के खिलाफ भारत के प्रयासों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है जिसके मार्ग में कई बाधाएँ थीं। कम उम्र में गर्भावस्था, शिक्षा और जानकारी की कमी, पीने के पानी तक अपर्याप्त पहुँच, स्वच्छता की कमी आदि कारणों से भारत वर्ष 2022 तक “कुपोषण मुक्त भारत” के अपेक्षित परिणामों को प्राप्त करने में पिछड़ रहा है, जिसकी परिकल्पना राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत की गई है। विश्व खाद्य दिवस, 2022 की थीम: किसी को भी पीछे न छोड़ें (Leave No One Behind) है।
गुजरात में आयुष्मान कार्ड का वितरण
प्रधानमंत्री ने 17 अक्तूबर, 2022 को गुजरात में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मुख्यमंत्री अमृतम आयुष्मान कार्ड के वितरण का शुभारम्भ किया। प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना के तहत गुजरात में सभी लाभार्थियों को उनके घर पर पचास लाख रंगीन मुद्रित आयुष्मान कार्ड वितरित किये गए। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में श्री मोदी ने वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री अमृतम योजना शुरू की थी। यह योजना गरीब नागरिकों को बीमारी के इलाज़ में होने वाले भयावह खर्च से बचाने के लिये लाई गई थी। वर्ष 2014 में इस योजना में उन परिवारों को भी शामिल किया गया जिनकी वार्षिक आय चार लाख रुपए तक है। बाद में इस योजना में कई अन्य समूहों को भी शामिल किया गया और इसका नाम मुख्यमंत्री अमृतम वात्सल्य योजना हो गया। योजना की सफलता को देखते हुए वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री ने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना शुरू की। इस योजना के तहत प्रति परिवार प्रति वर्ष पाँच लाख रुपए तक की कवरेज दी गई थी। वर्ष 2019 में गुजरात सरकार ने मुख्यमंत्री अमृतम वात्सल्य को आयुष्मान भारत – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना योजना के साथ जोड़ दिया।
विश्व आघात दिवस
यह प्रतिवर्ष 17 अक्तूबर को मनाया जाता है। सबसे नाज़ुक क्षणों के दौरान जीवन को बचाने और सुरक्षा के महत्त्व पर ध्यान केंद्रित करने की तैयारी एवं महत्त्वपूर्ण उपायों को अपनाने के लिये मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार विश्वभर में मृत्यु एवं विकलांगता का प्रमुख कारण आघात है। आघात का अर्थ”किसी भी तरह की शारीरिक एवं मानसिक चोट हो सकती है”। इस तरह की चोटों के कारणों की कई वज़ह जैसे कि सड़क दुर्घटना, आग, जलना, गिरना, प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाएँ और हिंसक कृत्य आदि हो सकते हैं इन सभी कारणों के मध्य विश्वभर में आघात का प्रमुख कारण सड़क यातायात दुर्घटना है।भारत में हर छह मिनट पर एक व्यक्ति सड़क दुर्घटना के कारण मौत का शिकार हो जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन हादसों से बचने के लिये यदि वाहन चालक सिर्फ ट्रैफिक नियम का पालन करें तो इसमें 60 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। देश में प्रतिवर्ष दस लाख लोग हेड इंजरी के शिकार होते हैं, जिनमें से 75 से 80 फ़ीसदी लोगों में सड़क दुर्घटना के कारण होती है। हेड इंजरी के शिकार 50 फीसदी लोग मर जाते हैं जिसमे से 25 फीसदी लोग विकलांग हो जाते हैं। इस विषय में कुछ सुरक्षात्मक एवं सावधानी तथा जागरूकता संबंधी उपाय किये जा सकते हैं साथ ही व्यक्ति द्वारा स्वयं से किसी भी प्रकार की लापरवाही न करने की अपेक्षा की जाती है। वैसे, इस प्रकार की स्थिति में आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर पर तुरंत कॉल कर तथा जल्द से जल्द पर्याप्त सहायता प्राप्त करना इसकी पहली शर्त है। यह बेहद महत्त्वपूर्ण है कि घायल व्यक्ति को एक घंटे के भीतर उचित चिकित्सा देखभाल की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।