चुनावी बाॅण्ड
हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने डेटा रिपोर्टिंग साझाा की जिसमें बताया गया है कि चुनावी बॉण्ड (EB) के माध्यम से राजनीतिक दलों को दान की गई राशि 10,000 करोड़ रुपए का आँकड़ा पार कर चुकी है।
जुलाई 2022 में आयोजित चुनावी बॉण्ड की 21वीं बिक्री में पार्टियों को चुनावी बॉण्ड खरीद से 5 करोड़ रुपए मिले।
पार्टियों द्वारा एकत्र की गई कुल राशि वर्ष 2018 में चुनावी बॉण्ड योजना शुरू होने के बाद से 10,246 करोड़ रुपए हो गई है।
चुनावी बॉण्ड:
परिचय:
भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्ड्स को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है।
चुनावी बॉण्ड दाताओं द्वारा गुप्त रूप से खरीदे जाते हैं और ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
ऋण साधनों के रूप में इन्हें दानदाताओं द्वारा बैंक से खरीदा जा सकता है और राजनीतिक दल उन्हें भुना सकते हैं।
इन्हें केवल एक पात्र राजनीतिक पार्टी द्वारा बैंक के अपने खाते में जमा करके भुनाया जा सकता है।
चुनावी बॉण्ड SBI द्वारा बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया है।
पात्रता:
केवल लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए के तहत ऐसे पंजीकृत राजनीतिक दल जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम-से-कम 1% वोट प्राप्त किया है, वे चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के लिये पात्र हैं।
चुनावी बॉण्ड भारत के लिये चुनौती का विषय:
मूल विचार के विपरीत:
चुनावी बॉण्ड योजना की मुख्य आलोचना यह की जाती है कि यह अपने मूल विचार यानी चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के ठीक विपरीत काम करता है।
उदाहरण के लिये आलोचकों का तर्क है कि चुनावी बॉण्ड की गुमनामी केवल जनता और विपक्षी दलों तक की सीमित होती है।
जबरन वसूली की संभावना:
चूँकि इस तरह के बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, ऐसे में कई आलोचकों का मानना है कि सरकार इसके माध्यम से यह जान सकती है कि कौन लोग विपक्षी दलों को वित्तपोषण प्रदान कर रहे हैं।
परिणामस्वरूप यह प्रकिया केवल तत्कालीन सरकार को ही धन उगाही की अनुमति देती है और इस प्रकार से सत्ताधारी पार्टी को अनुचित लाभ प्रदान करती है।
लोकतंत्र के लिये चुनौती:
वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के ज़रिये प्राप्त राशि का खुलासा करने से छूट दी है।
इसका मतलब है कि मतदाता यह नहीं जान पाएंगे कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक वित्तपोषित किया है।
हालाँकि प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक अपना वोट उन्हें देतें हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
‘जानने के अधिकार’ से समझौता:
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया है कि ‘जानने का अधिकार’ विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के खिलाफ:
चुनावी बॉण्ड नागरिकों को इस संदर्भ में कोई विवरण नहीं देते हैं।
उक्त गुमनामी उस समय की सरकार पर लागू नहीं होती है, जो कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुँच सकती है।
इसका मतलब यह है कि सत्ता में बैठी सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को बाधित कर सकती है।
क्रोनी कैपिटलिज़्म:
चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक चंदे पर पहले से मौजूद सभी सीमाओं को हटा देती है और प्रभावी रूप से अच्छे संसाधन वाले निगमों को चुनावों के लिये धन देने की अनुमति देती है जिससे क्रोनी कैपिटलिज़्म का मार्ग प्रशस्त होता है।
क्रोनी कैपिटलिज़्म एक आर्थिक प्रणाली है जो उद्योगपतियों और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों की विशेषता है।
आगे की राह
भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को तोड़ने और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता की कमी के लिये साहसिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की आवश्यकता है।
संपूर्ण शासनतंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने हेतु मौजूदा कानूनों में खामियों को दूर करना आवश्यक है।
मतदाता जागरूकता अभियान पर्याप्त बदलाव लाने में भी मदद कर सकते हैं।
यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और पार्टियों को अस्वीकार करते हैं जो उन परअधिक खर्च करते हैं या उन्हें रिश्वत देते हैं तो इससे लोकतंत्र एक कदम और आगे बढ़ेगा।
मुस्लिम महिला अधिकार
1 अगस्त को भारत में मुस्लिम महिला अधिकार दिवस (Muslim Women Rights Day) के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस 1 अगस्त को तीन तलाक बिल की पृष्ठभूमि में मनाया जाता है, जिसे 1 अगस्त, 2019 को संसद से मंज़ूरी मिली थी। तीन तलाक बिल, मुस्लिम महिलाओं को तलाक की शर्तों की सामाजिक बुराई की बेड़ियों से मुक्त करने में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हुआ है। शाह बानो बेगम एवं अन्य बनाम मो. अहमद खान’ तथा ‘शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य’ ने इस कदम की आधारशिला रखी। शायरा बानो ने अपनी रिट याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से तीन प्रथाओं तलाक-ए-बिद्दत, बहुविवाह, निकाह-हलाला को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी। संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 तथा अनुच्छेद 25 के उल्लंघन के आधार पर मामला दर्ज किया गया था। तीन तलाक कानून ने ‘तीन तलाक’ को एक आपराधिक कृत्य घोषित किया। इस कानून को एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जाता है क्योंकि इसने ‘तलाक’ की प्रथा को कानूनी रूप से अपराध घोषित करके लैंगिक असमानता के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा एवं सशक्तीकरण को सुनिश्चित किया। इसलिये इस दिन को मुस्लिम महिला अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह कानून महिलाओं की आत्मनिर्भरता, आत्म-सम्मान को बढ़ावा देने का प्रयास करता है क्योंकि यह मुस्लिम महिलाओं के मौलिक और लोकतांत्रिक अधिकारों को मज़बूत करता है। तीन तलाक कानून के तहत तलाक की घोषणा को संज्ञेय अपराध (cognizable offence) माना जाएगा। इस कानून में ज़ुर्माने के साथ-साथ 3 साल के कैद की सज़ा का प्रावधान है। मिस्र वर्ष 1929 में तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश था। मिस्र के बाद सूडान, पाकिस्तान (वर्ष 1956 में), मलेशिया (वर्ष 1969 में), बांग्लादेश (वर्ष 1972 में), इराक (वर्ष 1959 में) और सीरिया (वर्ष 1953 में) में भी तीन तलाक को प्रतिबंधित किया गया है। हाल के वर्षों में संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को, ईरान, साइप्रस, कतर, जॉर्डन, ब्रुनेई, अल्जीरिया तथा साथ ही भारत ने इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत में कानून पारित होने के बाद से तीन तलाक के मामलों में 82% की कमी आई है।
शहीद उधम सिंह
हाल ही में प्रधानमंत्री ने शहीद उधम सिंह की पुण्यतिथि 31 जुलाई, 2022 को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने अपना सर्वस्व देश के लिये न्यौछावर कर दिया। उधम सिंह वर्ष 1899 में पंजाब के संगरूर ज़िले के सुनाम में पैदा हुए, उन्हें ‘शहीद-ए-आजम’ सरदार उधम सिंह भी कहा जाता है जिसका अर्थ है ‘महान शहीद’। इन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। 13 अप्रैल, 1919 को जलियाँवाला हत्याकांड से प्रभावित होकर वे क्रांतिकारी गतिविधियों और राजनीति में सक्रिय हो गए। वे भगत सिंह से बहुत प्रभावित थे। वे वर्ष 1924 में औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से प्रवासी भारतीयों को संगठित करने के लिये गदर पार्टी में शामिल हुए। वर्ष 1927 में क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिये सहयोगियों और हथियारों के साथ भारत लौटते समय उन्हें अवैध रूप से आग्नेयास्त्र रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया तथा पाँच साल की जेल की सज़ा सुनाई गई। 13 मार्च, 1940 को उधम सिंह ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की कैक्सटन हिल में एक बैठक में जनरल डायर के स्थान पर माइकल ओ’डायर को गोली मार दी। उधम सिंह को मौत की सज़ा सुनाई गई और 31 जुलाई, 1940 को लंदन के पेंटनविले जेल में फाँसी दे दी गई।
इंडिया हाउस
हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ (RIL) ने पेरिस ओलंपिक 2024 में पहली बार इंडिया हाउस स्थापित करने हेतु भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) के साथ भागीदारी की है। RIL-IOA साझेदारी भारतीय एथलीटों के प्रदर्शन को बढ़ाने पर केंद्रित है। साथ ही साझेदारी भविष्य में ओलंपिक खेलों की मेज़बानी करने एवं वैश्विक खेल राष्ट्र के रूप में भारत की साख का निर्माण करने में सहयोग करेगी। RIL एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और ओलंपिक खेलों जैसे प्रमुख बहु-खेल आयोजनों में भारतीय एथलीटों का भी सहयोग करेगी। इसके अलावा भारत, पेरिस ओलंपिक 2024 से पहले जून 2023 में मुंबई के जियो वर्ल्ड सेंटर में 140वें प्रतिष्ठित IOC सत्र की मेज़बानी करेगा। खेल शासन के भारतीय मॉडल में युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय (MYAS), भारतीय ओलंपिक संघ (IOA), राज्य ओलंपिक संघ (SOA), राष्ट्रीय खेल महासंघ (NSF), भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) जैसे कई हितधारक शामिल हैं।