भारत में अंधविश्वास विरोधी कानून
केरल में दो महिलाओं की ‘कर्मकांडवादी मानव बलि’ के तहत नृशंस हत्याओं ने देश को सदमे में डाल दिया है।
इन हत्याओं ने भारत में अंधविश्वास, काला जादू और जादू-टोना की व्यापकता के बारे में एक बहस छेड़ दी है।
भारत में अंधविश्वास से होने वाली हत्याएँ कितनी व्यापक हैं?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2021 की रिपोर्ट में भारत में 6 लोगों की मृत्यु का कारण मानव बलि और 68 लोगों की मृत्यु का कारण जादू-टोना बताया गया है।
जादू टोना के सबसे अधिक मामले छत्तीसगढ़ (20), उसके बाद मध्य प्रदेश (18) और तेलंगाना (11) में दर्ज किये गए।
NCRB की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में भारत में जादू टोना के कारण 88 मौतें और 11 लोगों की मौत ‘मानव बलि’ के कारण हुई।
भारत में इससे संबंधित कानून:
भारत में जादू टोना और अंधविश्वास से संबंधित अपराधों के लिये कोई समर्पित केंद्रीय कानून नहीं है।
वर्ष 2016 में लोकसभा में डायन-शिकार निवारण विधेयक (Prevention of Witch-Hunting Bill) लाया गया था लेकिन यह पारित नहीं हुआ था।
मसौदा प्रावधानों में किसी महिला पर डायन का आरोप लगाने या महिला के खिलाफ आपराधिक बल का उपयोग करने या जादू-टोना करने के बहाने यातना देने या अपमान करने के लिये दंड का प्रावधान किया गया।
आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 302 (हत्या की सज़ा) के तहत मानव बलि को शामिल किया गया है (लेकिन हत्या होने के बाद ही)। इसी तरह धारा 295A ऐसी प्रथाओं को हतोत्साहित करती है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A (h) भारतीय नागरिकों के लिये वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और सुधार की भावना को विकसित करना एक मौलिक कर्त्तव्य बनाता है।
ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ एक्ट, 1954 के तहत अन्य प्रावधानों का भी उद्देश्य भारत में प्रचलित विभिन्न अंधविश्वासी गतिविधियों में कमी लाना है।
राज्य–विशिष्ट कानून:
बिहार:
बिहार पहला राज्य था जिसने जादू-टोना रोकने, एक महिला को डायन के रूप में चिह्नित करने और अत्याचार, अपमान तथा महिलाओं की हत्या को रोकने हेतु कानून बनाया था।
द प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिस एक्ट अक्तूबर 1999 में प्रभाव में आया।
महाराष्ट्र:
वर्ष 2013 में महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय कृत्य की रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम पारित किया ताकि राज्य में अमानवीय प्रथाओं तथा काला जादू आदि को प्रतिबंधित किया जा सके।
इस कानून का एक खंड विशेष रूप से ‘godman’ (स्वयं को इश्वर के समकक्ष मानने वाले) द्वारा किये गए दावों से संबंधित है जो दावा करते हैं कि उनके पास अलौकिक शक्तियाँ हैं।
कर्नाटक:
कर्नाटक ने वर्ष 2017 में अंधविश्वास विरोधी कानून को प्रभाव में लाने का कार्य किया, जिसे अमानवीय प्रथाओं और काला जादू रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम के रूप में जाना जाता है।
यह अधिनियम धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ी “अमानवीय” प्रथाओं का व्यापक रूप से विरोध करता है।
केरल:
केरल में काला जादू और अन्य अंधविश्वासों से निपटने के लिये कोई व्यापक अधिनियम नहीं है।
देशव्यापी अंधविश्वास विरोधी अधिनियम की आवश्यकता:
इस तरह की प्रथाओं को अबाध रूप से जारी रखने की अनुमति देना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत क्रमशः किसी व्यक्ति की समानता के मौलिक अधिकार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
इस तरह के कृत्य विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय विधानों के कई प्रावधानों का भी उल्लंघन करते हैं, जिनमें भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, जैसे ‘मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948’, ‘नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता, 1966’ और ”महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अभिसमय, 1979।
भारत के केवल आठ राज्यों में अब तक डायन-शिकार निवारण विधेयक कानून हैं।
इनमें बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, असम, महाराष्ट्र और कर्नाटक शामिल हैं।
अंधविश्वासों से निपटने के उपायों के अभाव में अवैज्ञानिक और तर्कहीन प्रथाओं जैसे उपचार के तरीके पर विश्वास, एवं चिकित्सा प्रक्रियाओं के बारे में गलत जानकारी भी बढ़ सकती है, जो सार्वजनिक व्यवस्था एवं नागरिकों के स्वास्थ्य पर गंभीर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है।
आगे की राह
यह याद रखना उचित है कि इस सामाजिक मुद्दे से निपटने के लिये कानून लाने का मतलब केवल आधी लड़ाई जीतना होगा।
सूचना अभियानों के माध्यम से इस तरह की प्रथाओं से जुड़े मिथकों को दूर करने के लिये समुदाय/धार्मिक विद्वानों को शामिल करके जनता के बीच जागरूकता बढ़ाकर सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
जल सप्ताह-इंडिया वाटर वीक का उद्घाटन:
भारत के राष्ट्रपति आज ग्रेटर नोएडा में जल सप्ताह-इंडिया वाटर वीक का उद्घाटन करेंगी। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा एकीकृत जल संसाधनों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, संरक्षण और उपयोग करने के प्रयास में 1 नवंबर से 5 नवंबर तक भारत जल सप्ताह के सातवें संस्करण का आयोजन किया जाएगा। इस मंच का उपयोग वैश्विक स्तर के निर्णयकर्त्ताओं, राजनेताओं, शोधकर्त्ताओं और उद्यमियों के बीच विचार-विमर्श हेतु किया जाएगा। जल सप्ताह का केंद्रीय विषय “सतत् विकास एवं समानता के लिये जल सुरक्षा” है। यह आयोजन दुनिया भर के विशेषज्ञों, योजनाकारों तथा हितधारकों के एकीकरण में मदद करेगा और सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन की स्थिरता से संबंधित मुद्दों को प्रस्तुत करेगा। कार्यक्रम में सम्मेलनों के साथ सेमिनार, पैनल चर्चा, प्रदर्शनियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाएगा। डेनमार्क, सिंगापुर और फिनलैंड इस आयोजन में भाग लेंगे।
हरित आयकर
आयकर विभाग ने 31 अक्तूबर, 2022 को समाप्त होने वाले भारत सरकार के महीने भर चले ‘विशेष स्वच्छता अभियान’ में बड़े उत्साह से भाग लिया। इसी दिन (31 अक्तूबर) सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती मनाई जाती है और इसे ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है। आयकर विभाग ने राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर हरित आयकर की शुूरुआत की है। इस विशेष पहल के तहत आयकर विभाग के भवनों और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों में एवं उनके आसपास पेड़ लगाकर तथा सूक्ष्म वन विस्तार कर हरित आवरण को बढ़ाने का संकल्प लिया गया है। शब्द एचएआरआईटी-हरित वास्तव में हरियाली अचीवमेंट रेज़ोल्यूशन बाई इनकम टैक्स का संक्षिप्त रूप है।
‘मानगढ़ धाम की गौरव गाथा’ कार्यक्रम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 01 नवंबर, 2022 को राजस्थान के बाँसवाड़ा ज़िले में ‘मानगढ़ धाम की गौरव गाथा’ कार्यक्रम में शामिल हुए। साथ ही उन्होंने गुजरात के पंचमहल ज़िले के जम्बूगोडा में आठ सौ साठ करोड़ रुपए लागत की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। प्रधानमंत्री गोधरा में श्री गोविंद गुरू विश्वविद्यालय के नए परिसर, वाडेक गाँव में संतजोरिया परमेश्वर प्राइमरी स्कूल और स्मारक तथा दांडियापुरा गाँव में राजारूप सिंह नायक प्राइमरी स्कूल व स्मारक का लोकार्पण भी करेंगे। प्रधानमंत्री गोधरा केंद्रीय विद्यालय भवन की आधारशिला रखेंगे। वे गोधरा मेडिकल कॉलेज के विकास एवं कौशल्य विश्वविद्यालय के विस्तार कार्य का शिलान्यास भी करेंगे। मानगढ़ धाम राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के लाखों श्रद्धालुओं के लिये विशेष महत्त्व रखता है। राजस्थान व गुजरात की सीमा पर बाँसवाड़ा ज़िले की आनंदपुरी पंचायत समिति क्षेत्र की पहाड़ी पर मानगढ़ धाम स्थित हैं। 17 नवंबर, 1913 में गोविन्द गुरु के नेतृत्त्व में अंग्रेज़ो से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए करीब 1500 आदिवासी शहीद हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि यह घटनाक्रम जलियावाला बाग से भी बड़ा था। दिल्ली के अभिलेखागार से मानगढ़ से जुड़े अधिकृत दस्तावेज़ जुटाने के बाद सरकार इसके विकास पर विशेष ध्यान डे रही है।