हिंद-प्रशांत क्षेत्र
नई दिल्ली में एशियाई तटरक्षक एजेंसियों (HACGAM) की 18वीं बैठक के दौरान भारत के रक्षा मंत्री ने पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए आर्थिक विकास के लिये समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग पर ज़ोर देते हुए कहा कि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में खुली और नियम आधारित समुद्री सीमाओं हेतु तैयार है।
एशियाई तटरक्षक एजेंसियों के प्रमुखों की बैठक (HACGAM):
यह एक शीर्ष स्तर का मंच है जो एशियाई क्षेत्र की सभी प्रमुख तटरक्षक एजेंसियों को सुविधा प्रदान करता है, इसकी स्थापना वर्ष 2004 में हुई थी।
यह ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, बांग्लादेश, ब्रुनेई, कंबोडिया, चीन, फ्राँस, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक, मलेशिया, मालदीव, म्याँमार, पाकिस्तान, फिलीपींस, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, तुर्किये, वियतनाम और हॉन्गकॉन्ग (चीन) सहित 23 देशों का एक बहुपक्षीय मंच है।
भारतीय तटरक्षक बल (ICG) HACGAM सचिवालय के समन्वय से 18वें HACGAM की मेज़बानी कर रहा है।
18 देशों एवं दो अंतर्राष्ट्रीय संगठनों [एशिया में जहाज़ों पर होने वाली समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती का सामना करने हेतु क्षेत्रीय सहयोग समझौता (ReCAAP ISC) तथा ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय- वैश्विक समुद्री अपराध कार्यक्रम (UNODC-GMCP)] के कुल 55 प्रतिनिधि बैठक में भाग ले रहे हैं।
हिंद–प्रशांत क्षेत्र
परिचय:
हिंद-प्रशांत एक हालिया अवधारणा है। लगभग एक दशक पहले दुनिया ने हिंद-प्रशांत के बारे में बात करना शुरू किया; इसका उदय काफी महत्त्वपूर्ण रहा है।
इस शब्द की लोकप्रियता के पीछे के कारणों में से एक यह है कि हिंद एवं प्रशांत महासागर एक-दूसरे से रणनीतिक रूप से निकटता से जुड़े हैं।
साथ ही एशिया आकर्षण का केंद्र बन गया है। इसका कारण यह है कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर समुद्री मार्ग प्रदान करते हैं। दुनिया का अधिकांश व्यापार इन्हीं महासागरों के माध्यम से होता है।
महत्त्व:
भारत-प्रशांत क्षेत्र दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है जिसमें चार महाद्वीप शामिल हैं: एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका।
क्षेत्र की गतिशीलता और जीवन शक्ति स्वयं स्पष्ट है, दुनिया की 60% आबादी और वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 2/3 भाग इस क्षेत्र को वैश्विक आर्थिक केंद्र बनाता है।
यह क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का एक बड़ा स्रोत और गंतव्य भी है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनिया की कई महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी आपूर्ति शृंखलाओं संबंधित है।
भारतीय और प्रशांत महासागरों में संयुक्त रूप से समुद्री संसाधनों का विशाल भंडार है, जिसमें अपतटीय हाइड्रोकार्बन, मीथेन हाइड्रेट्स, समुद्री खनिज और पृथ्वी की दुर्लभ धातु शामिल हैं।
बड़े समुद्र तट और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) इन संसाधनों के दोहन के लिये तटीय देशों को प्रतिस्पर्द्धी क्षमता प्रदान करते हैं।
दुनिया की कई सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थित हैं, जिनमें भारत, यू.एस.ए, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।
हिंद–प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में भारत का परिप्रेक्ष्य:
सुरक्षा ढाँचा हेतु दूसरों के साथ सहयोग: भारत के कई महत्त्वपूर्ण साझेदार, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडोनेशिया का मानना है कि दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर में भारत की उपस्थिति मूल रूप से चीन का मुकाबला करने के लिये हो।
हालाँकि भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के लिये सहयोग करना चाहता है। साझा समृद्धि एवं सुरक्षा हेतु देशों को बातचीत के माध्यम से क्षेत्र के लिये एक सामान्य नियम-आधारित व्यवस्था विकसित करने की आवश्यकता है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र अफ्रीका से अमेरिका तक विस्तृत: भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी क्षेत्र के रूप में है। इसमें इस क्षेत्र से संबंधित सभी देश और भागीदारी रखने वाले देश शामिल हैं। भारत अपने भौगोलिक आयाम में अफ्रीका के तटों से लेकर अमेरिका के तटों तक के क्षेत्र को मानता है।
व्यापार और निवेश में समान हिस्सेदारी: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित, खुले, संतुलित और स्थिर व्यापार वातावरण का समर्थन करता है, जो व्यापार एवं निवेश के क्षेत्र में सभी देशों के उन्नयन को सुनिश्चित करता है। ये देश क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से अपेक्षा रखते है।
एकीकृत आसियान: चीन के विपरीत भारत एक एकीकृत आसियान चाहता है, न कि विभाजित। चीन कुछ आसियान सदस्यों को दूसरों के खिलाफ करने की कोशिश के साथ एक तरह से ‘फूट डालो और राज करो’ की रणनीति को क्रियान्वित करता है।
चीन के साथ सहयोग: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अमेरिकी विचारधारा का पालन नहीं करता है, जो चीनी प्रभुत्व को नियंत्रित करना चाहता है। इसके बजाय भारत उन तरीकों की तलाश कर रहा है जिससे वह चीन के साथ मिलकर काम कर सके।
एकल अभिकर्त्ता के प्रभुत्व के विरुद्ध: भारत इस क्षेत्र का लोकतंत्रीकरण करना चाहता है।पहले यह क्षेत्र अमेरिका के प्रभुत्त्व में हुआ करता था। हालाँकि इस बात का भय बना हुआ है कि यह क्षेत्र अब चीनी प्रभुत्त्व में न आ जाए। लेकिन भारत इस क्षेत्र में किसी भी अभिकर्त्ता का आधिपत्य नहीं चाहता है।
वर्तमान में हिंद–प्रशांत क्षेत्र संबंधी चुनौतियाँ:
भू-रणनीतिक स्पर्द्धा का मंच: हिंद-प्रशांत क्षेत्र क्वाड और शंघाई सहयोग संगठन जैसे विभिन्न बहुपक्षीय संस्थानों के बीच भू-रणनीतिक स्पर्द्धा का प्रमुख मंच है।
चीन का सैन्यीकरण का कदम: चीन हिंद महासागर में भारत के हितों और स्थिरता के लिये एक चुनौती रहा है। भारत के पड़ोसियों को चीन से सैन्य और ढाँचागत सहायता मिल रही है, जिसके अंतर्गत म्याँमार के लिये पनडुब्बियाँ, श्रीलंका के लिये युद्धपोत तथा जिबूती (हॉर्न ऑफ अफ्रीका) में इसका विदेशी सैन्य अड्डा शामिल है।
इसके अलावा चीन का हंबनटोटा बंदरगाह (श्रीलंका) पर कब्जा है, जो भारत के तट से कुछ सौ मील की दूरी पर है।
गैर-पारंपरिक मुद्दों के लिये हॉटस्पॉट: इस क्षेत्र की विशालता के कारण जोखिमों का आकलन करना और उनका समाधान करना मुश्किल हो जाता है, जिसके अंतर्गत समुद्री डकैती, तस्करी और आतंकवाद की घटनाएँ शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन और लगातार तीन ला नीना की घटनाएँ जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चक्रवात एवं सूनामी पैदा कर रही हैं, इसकी पारिस्थितिक तथा भौगोलिक स्थिरता के लिये प्रमुख खतरे हैं।
इसके अलावा अवैध, अनियमित और असूचित (IUU) मछली पकड़ने के कार्य तथा समुद्री प्रदूषण इस क्षेत्र के जलीय जीवन में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।
भारत की सीमित नौसेना क्षमता: भारतीय सैन्य बजट के सीमित आवंटन के कारण भारतीय नौसेना के पास अपने प्रयासों को मज़बूत करने के लिये संसाधन और क्षमता सीमित है। इसके अलावा विदेशी सैन्य ठिकानों की कमी भारत के लिये हिंद-प्रशांत में अपनी उपस्थिति बनाए रखने हेतु एक बुनियादी चुनौती पैदा करती है।
आगे की राह
इस क्षेत्र के देशों की अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत समुद्र और हवाई क्षेत्र में सामान्य स्थानों के उपयोग के अधिकार के रूप में समान पहुँच होनी चाहिये, जिसके लिये अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार नेविगेशन की स्वतंत्रता, अबाधित वाणिज्य तथा विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता होगी।
संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता, परामर्श, सुशासन, पारदर्शिता, व्यवहार्यता तथा स्थिरता के आधार पर क्षेत्र में कनेक्टिविटी स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिये समुद्री डोमेन जागरूकता (MDA) आवश्यक है। MDA का तात्पर्य समुद्री पर्यावरण से जुड़ी किसी भी गतिविधि की प्रभावी समझ से है जो सुरक्षा, अर्थव्यवस्था या पर्यावरण पर प्रभाव डाल सकती है।
बहुध्रुवीयता: सुरक्षा, शांति और कानून का पालन करने की प्रकृति इस क्षेत्र के आसपास के देशों के लिये महत्त्वपूर्ण है। इससे क्षेत्र में बहुध्रुवीयता भी आएगी। इस क्षेत्र के छोटे राज्य भारत से अपेक्षा करते हैं कि वह किसी अवसर या संकट के जवाब में कार्रवाई करे और आर्थिक एवं सैन्य दोनों तरह से अपने विकल्पों को व्यापक बनाने में उनकी मदद करे। भारत को उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करना चाहिये।
विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस
प्रतिवर्ष 20 अक्तूबर को विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस (World Osteoporosis Day) के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम, निदान और उपचार के लिये वैश्विक जागरूकता के प्रसार के प्रति समर्पित है। WOD का उद्देश्य बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य पेशेवरों, नीति निर्माताओं एवं आमजन तक पहुँच बनाकर ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर (अस्थि-भंग) की रोकथाम को वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकता बनाना है। विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस, 2022 का विषय “स्टेप अप फॉर बोन हेल्थ” है। यह विषय समस्त आयु वर्ग में अस्थियों के बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये विशेष कार्य (व्यायाम) करने तथा वयस्क जीवन (प्रौढ़ जीवन) में ऑस्टियोपोरोसिस व फ्रैक्चर (अस्थि-भंग) के ज़ोखिम को कम करने पर केंद्रित है। यूनाइटेड किंगडम की नेशनल ऑस्टियोपोरोसिस सोसायटी ने 20 अक्तूबर, 1996 को ‘विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस’ की शुरुआत की। अंतर्राष्ट्रीय ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन ने वर्ष 1997 में इस दिवस का समर्थन किया, तब से WOD पूरी दुनिया में मनाया जाता है। अस्थिसुषिरता या ऑस्टियोपोरोसिस एक अस्थि-रोग है जिसमें फ़्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस का मुख्य कारण अस्थियों के ऊतकों की खराबी है। इस रोग में अस्थियाँ नाज़ुक एवं कमज़ोर हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप रीढ़ की हड्डी विशेषकर कूल्हे एवं कलाई के फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है।
14वाँ जनजातीय युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम
युवा और खेल मामलों के मंत्रालय ने 19 अक्तूबर, 2022 को नई दिल्ली में गृह मंत्रालय के सहयोग से जनजातीय युवाओं के विकास के लिये 14वें जनजातीय युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम के आयोजन की शुरुआत हुई। यह कार्यक्रम सात दिनों तक चलेगा। इसका उद्देश्य जनजातीय युवाओं को देश की भव्य सांस्कृतिक धरोहर से अवगत कराना है ताकि वे विविधिता में एकता के सिद्धांत को भलिभाँति समझ सके। इसका उद्देश्य इन युवाओं को देश की विकास गतिविधियों और औद्योगिक विकास से भी अवगत कराना है। इस कार्यक्रम में वामपंथी आतंकवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़ के सुकमा एवं राजनंदगाँव, मध्य प्रदेश के बालाघाट तथा बिहार के जमुई ज़िले से 18-22 वर्ष आयु के चुनिंदा 220 युवा भाग ले रहे हैं।
भारत में ई-20 फ्लेक्स ईंधन की आपूर्ति का भविष्य
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बताया गया है कि देश में फ्लेक्स-फ्यूल इंजन वाले वाहनों के उत्पादन को बड़े पैमाने पर विकसित करने की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत ईंधन की आपूर्ति के अगले वर्ष अप्रैल में शुरू किये जाने की संभावनाओं पर चर्चा की गई। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री ने 19 अक्तूबर को नई दिल्ली में जैविक ईंधन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन- सतत् भविष्य पर चर्चा की। इस कार्यक्रम के तहत फ्लेक्स-फ्यूल ई10 और ई20 वाहनों की बिक्री के लिये वाहन उद्योग को एक व्यवहार्य व्यावसायिक प्रस्ताव बनाने, वर्ष 2025 तक पेट्रोल के साथ ई20 सम्मिश्रण सुनिश्चित किये जाने से देश को प्रतिवर्ष लगभग 30000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा बचाने, जैव ईंधन बेचने वाले पेट्रोल पंपों की संख्या 2016-17 के 29897 से लगभग तीन गुना बढ़कर 2021-22 में 67641 होने आदि पर चर्चा की गई। सरकार द्वारा पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को वर्ष 2030 से पाँच वर्ष कम करके वर्ष 2025 कर दिया गया है।