प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता
हाल ही में भारत सरकार ने बताया कि देश ने प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता हासिल कर ली है, जिसमें 31 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की कुल प्रजनन दर 2.1 या उससे कम है।
वर्ष 2012 और 2020 के बीच भारत में आधुनिक गर्भ निरोधक उपायों से 1.5 करोड़ से अधिक युगल लाभान्वित हुए जो इनके उपयोग में हुई वृद्धि को दर्शाता है।
सरकार ने भारत परिवार नियोजन 2030 विज़न दस्तावेज़ का भी अनावरण किया।
प्रतिस्थापन प्रजनन क्षमता:
प्रति महिला लगभग 2.1 बच्चों की कुल प्रजनन दर (TFR) को प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता कहा जाता है।
प्रति महिला 2.1 बच्चों से कम TFR – इंगित करता है कि एक पीढ़ी स्वयं को प्रतिस्थापित करने के लिये लिये पर्याप्त बच्चे पैदा नहीं कर रही है, अंततः जनसंख्या में समग्र रूप से कमी आई है।
कुल प्रजनन दर एक महिला के संपूर्ण जीवनकाल में प्रसव करने वाली उम्र की महिला से पैदा या पैदा होने वाले कुल बच्चों की संख्या को संदर्भित करती है।
भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 2015-16 के 2.2 से घटकर वर्ष 2019-21 में 2.0 हो गई है, जो जनसंख्या नियंत्रण उपायों की महत्त्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है, जैसा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के पाँचवें दौर की रिपोर्ट से भी पता चलता है।
भारत परिवार नियोजन 2030 विज़न:
केंद्र बिंदु:
बच्चे पैदा करने की रणनीति, जागरूकता कार्यक्रमों में पुरुष भागीदारी की कमी, प्रवास और गर्भ निरोधकों तक पहुँच की कमी को प्राथमिकताओं के रूप में पहचाना गया है।
गर्भ निरोधक:
आधुनिक गर्भ निरोधक प्रसार दर:
प्रवासी विवाहित पुरुषों की बड़ी संख्या:
बिहार में 35 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 24 प्रतिशत।
आधुनिक गर्भ निरोधक प्रसार दर में कमी ज़्यादातर गर्भ निरोधक तैयारियों की कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच के कारण गर्भ निरोधकों की खरीद में असमर्थता और महिलाओं द्वारा गर्भ निरोधक को खरीदने के बारे में सामाज में व्याप्त संकोच की प्रवृत्ति के कारण भी होता है।
निवासी पुरुषों की संख्या:
बिहार में 47 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 36 प्रतिशत।
यद्यपि विवाहित किशोरों और युवतियों में आधुनिक गर्भ निरोधकों का उपयोग बढ़ा है, लेकिन यह अपेक्षाकृत रूप से कम है।
विवाहित महिलाओं और युवतियों ने बताया कि गर्भनिरोधक गोलियों की की पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नही हो पाती है।
कई ज़िलों में 20% से अधिक महिलाओं की शादी वयस्क होने से पहले ही हो जाती है।
इनमें बिहार के 17, पश्चिम बंगाल के 8, झारखंड के 7, असम के 4, यूपी, राजस्थान और महाराष्ट्र के दो-दो ज़िले शामिल हैं।
इन ज़िलों में आधुनिक गर्भ निरोधकों का कम उपयोग देखा गया है।
इस दृष्टि से आधुनिक गर्भ निरोधकों को उपलब्ध कराने के लिये निजी क्षेत्र का उपयोग करना भी योजना में शामिल है।
निजी क्षेत्र द्वारा गर्भ निरोधक गोलियों के वितरण में 45% और कंडोम के वितरण में 40% का योगदान दिया जाता है। इसके साथ ही इंजेक्शन जैसे अन्य प्रतिवर्ती गर्भ निरोधकों एवं अंतर्गर्भाशयी गर्भनिरोधक उपकरण (IUCD) में क्रमशः 30% और 24% का योगदान है।
प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन में गिरावट का कारण:
महिला सशक्तीकरण:
नवीनतम आँकड़े प्रजनन क्षमता, परिवार नियोजन, विवाह की आयु और महिला सशक्तीकरण से संबंधित कई संकेतकों पर महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाते हैं, इन सभी ने टीएफआर में कमी लाने में योगदान दिया है।
गर्भनिरोधक:
वर्ष 2012 और 2020 के बीच भारत ने आधुनिक गर्भ निरोधकों के उपयोग के लिये 1.5 करोड़ से अधिक अतिरिक्त उपयोगकर्त्ताओं शामिल किया जिससे इनके उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
रिवर्सिबल स्पेसिंग:
नई ‘रिवर्सिबल स्पेसिंग’ (बच्चों के बीच अंतर) विधियों की शुरुआत, नसबंदी के परिणामस्वरूप मज़दूरी मुआवज़ा प्रणाली और छोटे परिवार के मानदंडों को बढ़ावा देने जैसी कार्यवाहियों ने पिछले कुछ वर्षों में बेहतर प्रदर्शन किया है।
सरकारी पहल:
मिशन परिवार विकास:
सरकार ने सात उच्च फोकस वाले राज्यों में 3 और उससे अधिक के टीएफआर वाले 146 उच्च प्रजनन क्षमता वाले ज़िलों में गर्भ निरोधकों एवं परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिये वर्ष 2017 में ‘मिशन परिवार विकास’ शुरू किया।
राष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना (NFPIS):
यह योजना वर्ष 2005 में शुरू की गई थी, इस योजना के तहत नसबंदी के बाद मृत्यु, जटिलता और विफलता की स्थिति के लिये ग्राहकों का बीमा किया जाता है।
नसबंदी करने वालों के लिये मुआवज़ा योजना:
इस योजना के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 से नसबंदी कराने वाले लाभार्थी और सेवा प्रदाता (टीम) को मुआवज़ा प्रदान किया जाता है।
आगे की राह:
हालाँकि भारत ने प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता हासिल कर ली है, फिर भी प्रजनन आयु वर्ग में एक महत्त्वपूर्ण आबादी ऐसी है जिसे हस्तक्षेप प्रयासों के केंद्र में रखा जाना चाहिये।
भारत का ध्यान परंपरागत रूप से आपूर्ति पक्ष यानी प्रदाताओं और वितरण प्रणालियों पर रहा है, लेकिन अब समय मांग पक्ष पर ध्यान केंद्रित करने का है जिसमें परिवार, समुदाय और समाज शामिल हैं।
आपूर्ति पक्ष के स्थान पर मांग पक्ष पर ध्यान केंद्रित करने से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन संभव है।
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस
प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। यह दिन दुनिया के बाघों की आबादी के समक्ष आने वाले खतरों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने हेतु मनाया जाता है। वे संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र के अति आवश्यक प्राणी है। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के अनुसार, जैसा कि बाघ शीर्ष शिकारी है, इसलिये वह पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रूस के सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट में वर्ष 2010 में पहला विश्व बाघ दिवस मनाया गया था जिसमें टाइगर क्षेत्र वाले कुल 13 देशों ने वर्ष 2022 तक जंगली बाघों की आबादी को दोगुना करने का वैश्विक लक्ष्य तय किया था। बाघ संरक्षण वनों के संरक्षण का प्रतीक है। बाघ एक अनूठा जानवर है जो किसी स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र और उसकी विविधता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक खाद्य शृंखला में उच्च उपभोक्ता है और जंगली जानवरों (मुख्य रूप से बड़े स्तनपायी) की आबादी को नियंत्रण में रखता है। इस प्रकार बाघ शिकार द्वारा शाकाहारी जंतुओं और उस वनस्पति के मध्य संतुलन बनाए रखने में मदद करता है जिस पर वे भोजन के लिये निर्भर होते हैं।
हर घर ऊर्जा उत्सव
हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि राज्य सरकार जनजातीय क्षेत्रों में हर घर ऊर्जा उत्सव आयोजित कर ग्रामीण लोगों के जीवन में प्रकाश लाने के लिये प्रतिबद्ध है। महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के शाहपुर में आयोजित ऊर्जा उत्सव उज्ज्वल भारत-उज्ज्वल भविष्य-पॉवर@2047 को भेजे संदेश में मुख्यमंत्री ने राज्य भर में कार्यक्रम के विस्तार पर ज़ोर दिया। शाहपुर में ऊर्जा उत्सव भारत की आाज़ादी के 75वें वर्ष के सिलसिले में आयोजित किया गया। हालाँकि महाराष्ट्र देश में ऊर्जा क्षेत्र में सदैव अग्रणी रहा है। इसके साथ ही सरकार ने प्री-पेड स्मार्ट मीटर लगाने का फैसला किया है जिससे एक करोड़ 66 लाख विद्युत उपभोक्ताओं को फायदा होगा, वहीं केंद्र सरकार ने तटीय ज़िलों के लिये भूमिगत केबल लगाने की योजना बनाई है।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) परिषद
भारतीय विदेश मंत्री शंघाई सहयोग संगठन (SCO) परिषद के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिये 28 जुलाई को उज़्बेकिस्तान की दो दिवसीय यात्रा पर गए हैं। इस बैठक में 15 और 16 सितंबर को समरकंद में होने वाली राष्ट्राध्यक्षों की बैठक की तैयारियों पर चर्चा होगी। इस अवसर पर वे SCO संगठन के विस्तार और साझा हितों वाले क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे। SCO में भारत, कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़ गणराज्य, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान तथा उज़्बेकिस्तान शामिल हैं। अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया इसके पर्यवेक्षक देश हैं। SCO एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। यह यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसका लक्ष्य इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता को बनाए रखना है। इसका गठन वर्ष 2001 में किया गया था। SCO चार्टर वर्ष 2002 में हस्ताक्षरित किया गया था तथा यह वर्ष 2003 में लागू हुआ। इस संगठन का उद्देश्य सदस्य देशों के मध्य परस्पर विश्वास तथा सद्भाव को मज़बूत करना, राजनैतिक, व्यापार एवं अर्थव्यवस्था, अनुसंधान व प्रौद्योगिकी और संस्कृति के क्षेत्र में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना तथा लोकतांत्रिक, निष्पक्ष एवं तर्कसंगत नव-अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक, आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करना है।