C-295 विमान
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने वडोदरा में एयरबस डिफेंस एंड स्पेस एसए, स्पेन और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) द्वारा स्थापित की जाने वाली C-295 परिवहन विमान निर्माण सुविधा की आधारशिला रखी।
यह पहली बार है जब कोई निजी क्षेत्र की कंपनी देश में एक पूर्ण विमान का निर्माण करेगी।
C-295 मेगावाट ट्रांसपोर्टर:
परिचय:
C-295 समसामयिक तकनीक के साथ 5-10 टन क्षमता का परिवहन विमान है।
यह मज़बूत और भरोसेमंद होने के साथ-साथ एक बहुमुखी एवं कुशल सामरिक परिवहन विमान है, जो कई अलग-अलग मिशनों को पूरा कर सकता है।
विशेषताएँ:
इस विमान को 11 घंटे तक की उड़ान क्षमता के साथ सभी मौसमों में बहु-भूमिकाओं में संचालित किया सकता है।
यह रेगिस्तान से लेकर समुद्री वातावरण तक नियमित रूप से दिन के साथ-साथ रात के दौरान युद्ध अभियानों को संचालित कर सकता है।
इसमें सैनिकों और कार्गो की त्वरित प्रतिक्रिया तथा पैरा ड्रॉपिंग के लिये रियर रैंप दरवाज़ा है। अर्द्ध-निर्मित सतहों से शॉर्ट टेक-ऑफ/लैंड इसकी एक और विशेषता है।
प्रतिस्थापन:
यह भारतीय वायु सेना के एवरो-748 विमानों के पुराने बेड़े की जगह लेगा।
एवरो-748 विमान एक ब्रिटिश मूल के ट्विन-इंजन टर्बोप्रॉप (British-origin twin-engine turboprop), सैन्य परिवहन और 6 टन माल ढुलाई क्षमता वाला मालवाहक विमान है।
परियोजना निष्पादन:
TASL एयरोस्पेस क्षेत्र में मेक-इन-इंडिया पहल के तहत वायु सेना को नए परिवहन विमान से लैस करने की परियोजना को संयुक्त रूप से निष्पादित करेगा।
एयरबस द्वारा सितंबर 2023 से अगस्त 2025 के बीच उड़ान भरने में सक्षम पहले 16 विमानों की आपूर्ति की जाएगी, जबकि शेष 40 को TASL द्वारा सितंबर 2026 से वर्ष 2031 के बीच प्रतिवर्ष आठ विमानों की दर से भारत में असेंबल किया जाएगा।
इस विनिर्माण सुविधा का महत्त्व:
रोज़गार सृजन:
टाटा कंसोर्टियम ने सात राज्यों में फैले 125 से अधिक इन-कंट्री एमएसएमई आपूर्तिकर्ताओं की पहचान की है। यह देश के एयरोस्पेस पारितंत्र में रोज़गार सृजन में एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगा।
यह उम्मीद जताई गई है कि सीधे 600 उच्च कुशल रोज़गार, 3,000 से अधिक अप्रत्यक्ष रोज़गार और 3,000 अतिरिक्त मध्यम कौशल रोज़गार के अवसर के साथ भारत के एयरोस्पेस एवं रक्षा क्षेत्र में 42.5 लाख से अधिक ‘काम के घंटे’ सृजित होंगे।
MSMEs को प्रोत्साहन:
यह परियोजना भारत में एयरोस्पेस पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देगी जिसमें देश भर में फैले कई सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) विमान के कुछ पुर्जों के निर्माण में शामिल होंगे।
आयात पर निर्भरता कम होना:
इससे घरेलू विमानन निर्माण में वृद्धि होगी जिसके परिणामस्वरूप आयात पर निर्भरता कम होगी और निर्यात में अपेक्षित वृद्धि होगी।
बड़ी संख्या में डिटेल पार्ट्स, सब-असेंबलिंग और मेेजर कंपोनेंट का निर्माण भारत में किया जाएगा।
अवसंरचनात्मक विकास:
इसमें हैंगर, भवन, एप्रन और टैक्सीवे के रूप में विशेष बुनियादी ढाँचे का विकास शामिल होगा
डिलीवरी के पूरा होने से पहले, भारत में C-295 MW विमानों के लिये ‘D’ लेवल सर्विसिंग सुविधा (MRO) स्थापित करने की योजना है।
यह उम्मीद की जाती है कि यह सुविधा C-295 विमान के विभिन्न रूपों के लिये एक क्षेत्रीय MRO (रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल) हब के रूप में कार्य करेगी।
ऑफसेट दायित्व:
इसके अलावा एयरबस भारतीय ऑफसेट पार्टनर्स से योग्य उत्पादों और सेवाओं की सीधी खरीद के माध्यम से अपने ऑफसेट दायित्वों का निर्वहन भी करेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को और अधिक बढ़ावा मिलेगा।
सरल शब्दों में ऑफसेट एक ऐसा दायित्व है कि अगर किसी विदेशी भागीदार से भारत रक्षा उपकरण खरीद रहा है तो वह भारत के घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने हेतु प्रतिवद्ध होता है।
भारत के नागरिक उड्डयन क्षेत्र की क्षमता:
अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण बाज़ार होने के अतिरिक्त भारत की रक्षा क्षेत्र की तुलना में नागरिक उड्डयन निर्माण क्षेत्र में काफी बड़ी उपस्थिति है। संयुक्त राज्य अमेरिका में एयरबस और बोइंग दोनों अपने नागरिक कार्यक्रमों का एक बड़ा हिस्सा भारत से प्राप्त करते हैं।
भारत से बोइंग की सोर्सिंग सालाना 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की है, जिसमें से 60% से अधिक विनिर्माण में लगता है।
भारत प्रतिवर्ष 45 से अधिक भारतीय आपूर्तिकर्त्ताओं से 650 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के विनिर्मित पुर्जे और इंजीनियरिंग सेवाएँ खरीदता है।
‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक फॉर द ग्लोब’ के मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा भारत परिवहन विमानों का एक प्रमुख निर्माता बनकर अपनी क्षमता को लगातार बढ़ा रहा है।
वर्ष 2007 के बाद से एयरबस का भारत में एक पूर्ण घरेलू स्वामित्त्व वाला डिज़ाइन केंद्र है, जिसमें 650 से अधिक इंजीनियर हैं, जो अत्याधुनिक वैमानिकी इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ हैं और फिक्स्ड एवं रोटरी-विंग एयरबस विमान कार्यक्रमों दोनों में काम करते हैं।
ऐसा अनुमान है कि आने वाले 10-15 वर्षों में भारत को लगभग 2000 से अधिक यात्री और मालवाहक विमानों की आवश्यकता होगी।
एक अन्य प्रमुख उत्पादक क्षेत्र MRO (रखरखाव, मरम्मत और संचालन) है जिसके लिये भारत क्षेत्रीय केंद्र के रूप में उभर सकता है।
MRO के अंतर्गत किसी वस्तु को उसकी कार्यशील स्थिति में रखने या पुनर्स्थापित करने का कार्य किया जाता है।
ब्लैक सी ग्रेन पहल के स्थगन पर चिंता
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता वाली ब्लैक सी ग्रेन पहल के स्थगन को लेकर चिंता व्यक्त की है। भारत ने कहा है कि इस कदम से दुनिया, विशेष रूप से दक्षिणी देशों के सामने खाद्य सुरक्षा, ईंधन और उर्वरक आपूर्ति की चुनौतियाँ बढ़ने की संभावना है। यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ब्रीफिंग डिबेट में भारत के स्थायी मिशन के सलाहकार ने कहा कि काला सागर अनाज सौदे ने यूक्रेन में शांति की आशा की किरण प्रदान की थी और गेहूँ तथा अन्य वस्तुओं की कीमतों को कम करने में मदद की थी। भारतीय राजनयिक ने कहा कि इस पहल के परिणामस्वरूप यूक्रेन से 90 लाख टन से अधिक अनाज और अन्य खाद्य उत्पादों का निर्यात हुआ, जिसने गेहूँ एवं अन्य वस्तुओं की कीमतों को कम करने में योगदान दिया जो खाद्य कृषि संगठन के खाद्य मूल्य सूचकांक में गिरावट से स्पष्ट है।
बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर
हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ओडिशा के तट पर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से लार्ज किल एल्टीट्यूड ब्रैकेट के साथ फेज़- II बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) इंटरसेप्टर एडी-1 मिसाइल का पहला सफल उड़ान परीक्षण किया । एडी-1 एक लंबी दूरी की इंटरसेप्टर मिसाइल है जिसे लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ-साथ विमानों के लो एक्सो-एटमॉस्फेरिक और एंडो-एटमॉस्फेरिक इंटरसेप्शन दोनों के लिये डिज़ाइन किया गया है। यह दो चरणों वाली ठोस मोटर से संचालित होने के साथ देश में ही विकसित उन्नत नियंत्रण प्रणाली, नेविगेशन एवं गाइडेंस एल्गोरिदम से लैस है।
अमर्त्य सेन
अमर्त्य सेन का जन्म 03 नवंबर, 1933 में कोलकाता में हुआ था। उनकी शिक्षा कोलकाता के शांति निकेतन, ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’ तथा कैंब्रिज के ट्रिनीटी कॉलेज से हुई।इसके अतिरिक्त उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी अध्यापन का कार्य किया है। वे एक महान अर्थशास्त्री एवं दार्शनिक हैं। गौरतलब है कि द्वितीय पंचवर्षीय योजना में अमर्त्य सेन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अमर्त्य सेन ने महालनोविस के द्वि-विभागीय कमियों को दूर करने के लिये चार विभागों वाला एक वैज्ञानिक मॉडल प्रस्तुत किया जिसे ‘राज-सेन मॉडल’ के नाम से जाना जाता है। इस मॉडल को उन्होंने प्रोफेसर के.एन. राज के साथ मिलकर तैयार किया था। उन्होंने जहाँ एक ओर संवृद्धि की आवश्यकता पर बल दिया, वहीं बेरोज़गारी उन्मूलन को प्राथमिकता देने की बात कही। सेन के अनुसार, भारत जैसे देश में गरीबी उन्मूलन के लिये ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को समुचित संस्थानिक प्रोत्साहन तथा उत्पादन के कारकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। सेन ने अकाल की बदलती प्रवृत्ति एवं कारणों पर भी समुचित प्रकाश डाला। वर्ष 1999 में भारत रत्न से सम्मानित अमर्त्य सेन को वर्ष 1998 में अर्थशास्त्र के लिये नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।