दूरस्थ मतदान सुविधा
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार ने कहा कि वह अनिवासी भारतीयों (NRI), विशेष रूप से प्रवासी मज़दूरों के लिये दूरस्थ मतदान सुविधा पर विचार कर रही है, ताकि चुनावी प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित करते हुए दूरस्थ मतदान सुविधा उपलब्ध कराई जा सके।
पृष्ठभूमि:
वर्ष 2020 में चुनाव आयोग के अधिकारियों ने दूरस्थ मतदान को सक्षम करने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करने का विचार भी प्रस्तावित किया। इसका उद्देश्य मतदान में भौगोलिक बाधाओं को दूर करना है।
आयोग दूरस्थ मतदान की संभावना पर विचार कर रहा है जिससे लोग अपने कार्यस्थल से मतदान कर सकेंगे।
जनप्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक 2017 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 20A के तहत लगाए गए ‘अनुचित प्रतिबंध’ को हटाने का प्रस्ताव किया गया था, जिसके तहत विदेश में रह रहे भारतीय मतदाताओं को अपने निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान करने के लिये भौतिक रूप से उपस्थित रहने की आवश्यकता होती है.
यह वर्ष 2018 में विधेयक में पारित हो गया था, लेकिन 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ समाप्त हो गया।
वर्तमान में केवल निम्नलिखित मतदाताओं को डाक मतपत्र के माध्यम से अपना वोट डालने की अनुमति है:
सेवारत मतदाता (सशस्त्र बल, किसी राज्य का सशस्त्र पुलिस बल और विदेश में तैनात सरकारी कर्मचारी),
मतदाता, चुनाव ड्यूटी में संलग्न,
80 वर्ष से अधिक आयु के मतदाता या विकलांग व्यक्ति (PwD),
निवारक नजरबंदी के तहत मतदाता।
रिमोट वोटिंग/दूरस्थ मतदान:
दूरस्थ मतदान किसी नियत मतदान केंद्र के अलावा कहीं और व्यक्तिगत रूप से हो सकता है या किसी अन्य समय पर हो सकता है या वोट डाक द्वारा भेजे जा सकते हैं या नियुक्त प्रॉक्सी द्वारा डाले जा सकते हैं।
विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा मांग की गई है कि चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि प्रवासी श्रमिक, एनआरआई (अनिवासी भारतीय) जो मतदान से चूक जाते हैं, क्योंकि वे अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिये चुनाव के दौरान घर जाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, उन्हें जिस शहर में वे काम कर रहे हैं, वहाँ के निर्वाचन क्षेत्र में वोट देने की अनुमति दी जानी चाहिये।
दूरस्थ मतदान की आवश्यकता:
प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण:
मतदाता अपने पंजीकरण के स्थान से शहरों और अन्य स्थानों पर शिक्षा, रोज़गार और अन्य उद्देश्यों के लिये प्रवासन करते हैं। उनके लिये वोट डालने के लिये अपने पंजीकृत मतदान केंद्रों पर लौटना मुश्किल हो जाता है।
यह भी देखा गया है कि उत्तराखंड के दुमक और कलगोठ जैसे गाँवों में लगभग 20-25% पंजीकृत मतदाता अपने निर्वाचन क्षेत्रों में वोट डालने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्हें नौकरी या शैक्षिक कारण से अपने गाँव/राज्य से बाहर जाना पड़ता है।
मतदान प्रतिशत में कमी:
वर्ष 2019 के आम चुनावों के दौरान कुल 910 मिलियन मतदाताओं में से लगभग 300 मिलियन नागरिकों ने अपना वोट नहीं डाला।
महानगरीय क्षेत्रों से संबंधित चिंताएँ:
चुनाव आयोग द्वारा शहरी क्षेत्रों में मतदाता के लिये 2 किमी. के भीतर मतदान केंद्र स्थापित किये जाने के बावजूद कुछ महानगरों/शहर क्षेत्रों में कम मतदान के बारे में चिंता व्यक्त की गई। शहरी क्षेत्रों में मतदान को लेकर उदासीनता को दूर करने की आवश्यकता महसूस की गई।
असंगठित श्रमिकों का बढ़ता पंजीकरण:
प्रवासी श्रमिकों की संख्या लगभग 10 मिलियन हैं, जो असंगठित क्षेत्र से हैं और सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत हैं। यदि रिमोट वोटिंग परियोजना को लागू किया जाता है, तो इसके दूरगामी प्रभाव होंगे।
स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ:
मुख्य रूप से वरिष्ठ नागरिकों की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर भी चर्चा करने की आवश्यकता है क्योंकि वे भी मुख्य विचार-विमर्श बन रहे हैं। दूरस्थ मतदान सुविधा के परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी मतदान प्रतिशत में वृद्धि होगी।
रिमोट वोटिंग से संबंधित समस्याएँ :
सुरक्षा:
कोई भी नई प्रौद्योगिकी प्रणाली जिसमें ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी और अन्य पर आधारित प्रणाली शामिल है, साइबर हमलों एवं अन्य सुरक्षा कमज़ोरियों के प्रति संवेदनशील हैं।
सत्यता और पुष्टिकरण:
इसके अलावा एक मतदाता सत्यापन प्रणाली जो बायोमेट्रिक सॉफ्टवेयर का उपयोग करती है, जैसे कि चेहरे की पहचान, मतदाता पहचान में सकारात्मक या नकारात्मक झूठी जानकारी दे सकती है, इस प्रकार से धोखाधड़ी को बल मिलता है।
इंटरनेट कनेक्शन और मालवेयर सुरक्षा:
मतदान हेतु मतदाताओं की निर्भरता विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्शन पर रहती है कुछ देशों में इंटरनेट की पहुँच और उपलब्धता एवं ई-सरकारी सेवाओं का उपयोग सीमित है।
मतदाताओं के उपकरणों पर सॉफ्टवेयर त्रुटियाँ या मालवेयर भी वोट कास्टिंग (मतदान) को प्रभावित कर सकते हैं।
गोपनीयता:
मतदाता गोपनीयता और अंतिम परिणामों की अखंडता की रक्षा के लिये चुनावों में हमेशा उच्च स्तर की सुरक्षा की आवश्यकता होती है। चुनावों की सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने का मतलब है कि ऑनलाइन वोटिंग तकनीक से उन बाधाओं को दूर करना होगा जो मतदाता की गोपनीयता के लिये खतरा उत्पन्न कर सकती हैं।
पसंदीदा वातावरण: यह भी संभव है कि मतदान अनियंत्रित वातावरण में हो। अतः यह सुनिश्चित करना मुश्किल है कि व्यक्ति स्वतंत्र रूप से और बिना ज़बरदस्ती के मतदान करे।
इसमें जोखिम यह है कि कोई अन्य व्यक्ति मतदाता की ओर से मतदान करता है, इसलिये मतदाता की पहचान करना मुश्किल है।
भारतीय चुनावों में प्रवासी मतदाताओं के लिये वर्तमान मतदान प्रक्रिया:
जन प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 2010 के माध्यम से पात्र एनआरआई जो छह महीने से अधिक समय तक विदेश में रहे थे, को मतदान करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन केवल मतदान केंद्र पर व्यक्तिगत रूप से जहाँ उन्हें एक विदेशी मतदाता के रूप में नामांकित किया गया था।
वर्ष 2010 से पहले एक भारतीय नागरिक जो एक पात्र मतदाता है तथा छह महीने से अधिक समय से विदेश में रह रहा हो, चुनाव में मतदान नहीं कर सकता था। ऐसा इसलिये था क्योंकि वह देश से बाहर छह महीने से अधिक समय तक रहा है और NRI का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया था।
NRI, निर्वाचन क्षेत्र में अपने निवास स्थान पर मतदान कर सकता है, जैसा कि पासपोर्ट में उल्लिखित है।
वह केवल व्यक्तिगत रूप से मतदान कर सकता है और पहचान के लिये उसे मतदान केंद्र पर अपना पासपोर्ट मूल रूप में प्रस्तुत करना होगा।
आगे की राह
ऑनलाइन मतदान प्रणाली को यह सत्यापन करने में भी सक्षम होना चाहिये कि इसमें चुनाव की अखंडता बनी रहने के साथ मतदान प्रक्रिया के दौरान कोई हेरफेर नहीं हुई हो।
यह महत्त्वपूर्ण है कि रिमोट वोटिंग की किसी भी प्रणाली में चुनावी प्रणाली के सभी हितधारकों- मतदाताओं, राजनीतिक दलों और चुनाव मशीनरी के विश्वास एवं स्वीकार्यता को ध्यान में रखने के साथ राजनीतिक सहमति भी रिमोट वोटिंग शुरू करने का एक रास्ता है।
यदि सरकार या आम जनता इसकी सुरक्षा, अखंडता और सटीकता को लेकर आश्वस्त नहीं है तो उचित कानूनी ढाँचे के बावजूद ऑनलाइन वोटिंग प्रणाली का उपयोग करना व्यर्थ होगा।
प्रभावी डाक प्रणाली तथा डाक मतपत्र तंत्र, जो नामित कांसुलर/दूतावास कार्यालयों में मतपत्र के उचित प्रमाणीकरण की अनुमति देता है, को अनिवासी भारतीयों के लिये आसान बनाया जाना चाहिये, लेकिन देश से दूर बिताए गए समय के आधार पर पात्रता हेतु नियमों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाना चाहिये।
मानव कंप्यूटर: शकुंतला देवी
शकुंतला देवी का जन्म 4 नवंबर, 1929 को बंगलुरु,कर्नाटक में हुआ था। उन्हें “मानव कंप्यूटर” के रूप में जाना जाता है। बचपन से ही वह अद्भुत प्रतिभा की धनी थीं और बड़ी से बड़ी संखाओं की गणना पल भर में ही कर लेती थीं। उनकी प्रतिभा को देखते हुए वर्ष 1982 में उनका नाम ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज कर लिया गया। 6 वर्ष की उम्र में मैसूर विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें अपनी गणना क्षमता का प्रदर्शन करने का अवसर मिला। वर्ष 1977 में शकुंतला ने 201 अंकों की संख्या का 23वाँ वर्गमूल बिना किसी कागज़ व कलम की सहायता लिये ही निकाल दिया था तथा उनका उत्तर UNIVAC 1101 कंप्यूटर में देखने के लिये US ब्यूरो ऑफ स्टैंडर्ड को विशेष प्रोग्राम तैयार करना पड़ा था। बौद्धिक रूप से धनी शकुंतला देवी लेखिका भी थी और उनके द्वारा लिखित पुस्तक का शीर्षक “दी वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्सुअल (1977)” है। वर्ष 1969 में फिलीपींस विश्वविद्यालय ने उन्हें “वुमेन ऑफ़ दी ईयर” का दर्जा देते हुए सम्मानित किया था। उन्हें रामानुजन गणित ज्ञाता पुरस्कार भी दिया गया। हृदय संबंधी समस्या के कारण 21 अप्रैल, 2013 को उनका देहांत हो गया।
15वाँ शहरी सचलता भारत सम्मेलन और प्रदर्शनी
15वाँ शहरी सचलता भारत सम्मेलन और प्रदर्शनी का उद्घाटन 02 नवंबर, 2022 को कोच्चि, केरल में आवास और शहरी कार्य मंत्री तथा केरल के मुख्यमंत्री ने संयुक्त रूप से किया। इस तीन दिवसीय सम्मेलन में केंद्र और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी, नीति निर्धारक, मेट्रो रेल कंपनियों के प्रबंध निदेशक, अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ तथा अन्य लोग भाग ले रहे हैं। “वार्षिक आयोजन का उद्देश्य शहर एवं राज्य स्तर पर क्षमताओं का निर्माण व शहरी परिवहन से जुड़ी समस्याओं का समाधान करना है। सम्मेलन का विषय है-“आज़ादी@75 – सतत् आत्मनिर्भर शहरी गतिशीलता”। सम्मलेन में समाज के सभी वर्गों हेतु समान और टिकाऊ शहरी परिवहन प्रणाली विकसित करने के लिये दिशा-निर्देश भी निर्धारित किये जाएंगे।